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________________ पोयूषणिो-टोका सु ४० कूणिकस्य धल्ल्यात प्रत्यादेश करेहि य कारवेहि य, करेता य कारवेत्ता य एयमाणत्तिय पच्चप्पिणाहि, मिनाहिस्सामि समणं भगव महावीर अभिवंदिउ ॥ सू. ४०॥ लोदय' इति देशीय शब्द , गोमयादिना भूमौ यद् लेपन सेटिकादिना कुड्यादिषु च यद धवलन तद् 'लाउल्लोइय' तेन महिताम्-मुमहिनाम्, 'गासीस सरस रत्तचदणजाव-गधवटिभूय करेहि य' गोगीर्ष-मरस-रक्तचन्दन यापद्-ग धवतिभूता कुरु-गोगा - चन्दनविशेषै सरसरक्तचन्दनेन यावद गयातिभूता-समुपचितगधद्रव्यरूपा कुरु, 'कारवेहि य' कारय च, अन्यानपि तथा कर्तुं प्रेरय, 'करेताय कारवेत्ता य' कृत्वा च कारयिया च “एयमाणत्तिय पचप्पिणाहि' एतामाजा प्रत्यर्पय, आजापिताऽर्थान् सम्पाद्य मह्य कथय, 'णिज्जाहिस्सामि समण भगव महावीर अभिवदिउ' निर्यास्यामि निर्गमिष्यामि श्रमण भगत महावीरमभिवन्दितुम् ॥ सू ४० ॥ और भातों को सडा से पुतबाओ, (गोसीस सरस रत्तचदम नाव गपट्टि-भूय) गोगीर्षचन्दन रिशेप, एव सरस रक्तचदन से समस्त नगर को सुगधित बनवाओ ताकि वह मुगध पुज जैसा मालम पडन लगे। (करेहि य कारवेहि य) यह सब काम स्वय करो तथा दूसरों को भी इस तरह करने के लिये प्रेरित करो। (करेत्ता य कारवेत्ता य) करके एव करवा करके(एयमाणत्तिय पचप्पिणाहि) इस मेरी आज्ञा को पुन मुझे प्रत्यर्पित करो-आपकी आजानुसार सर काम हो चुके है इसकी मुझे सबर तो। (णिज्जाहिस्सामि समण भगव महावीर अभिवदिउ) बाद मे मै श्रमण भगवान महावीर की वन्दना के लिये निकलगा ॥सू ४०॥ भीनने दीपाव। मनमीताने माथी घोपाव। (गोसीस-सरस-रत्तचदण जाव--गववाट्रि-भूय) गोशीप-यन्न विशेष तभ०४ स२४ २४तय हुनथी समस्त नगरने सुगधित मनावो थी ते भुगधY४२वी rnaसागे (करेहि य कारवेहि य) मा मधु म नते ४२ तथा भीगने ५ वी शत ' ४२५। प्रेरित २, (करेत्ता य कारवेत्ता य) शन तभ०४ ४२शवीन (एयमाणत्तिय पच्चप्पिणाहि) मा भारी माज्ञान पाछी भने प्रत्यापित 31-मापनी मासानु सार मधु भ 25 यूज्यु छ अनी भने भर हो (णिज्जाहिस्सामि समण भगव महागीर अभिवदिउ) माह हु श्रम नावान महावीरनी पहना भाटे नीजीश (सू ४०)
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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