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________________ ___ पोयुपपिणो-टोका र ३८ भगवा र्शनार्थ जनोत्सुक्यम ३४९ समणे भगव महावीरे आइगरे तित्वगरे सयंसवुद्ध पुरिमुत्तमे जाब संपाविउकामे पुव्वाणुपुचि चरमाणे गामाणुगाम दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते, इह समोसढे, इहेव चपाए णयरीए वहिं किं कथयतीति मूकार आर-एव ग्वल देवाणुप्पिया' इत्यादि। एप गल भो देवानुप्रिया । श्रमगो भगवान् मटापार , 'आइगरे तित्ययरे सयसयुद्धे आदिकरस्तार्थकर स्वयमबुद्ध , 'पुरिमुत्तमे' पुस्पोत्तम , 'जाव सपाविउकामे' यावत्सम्प्राप्तुकाम -मिद्धिगतिनामधेय स्थान मप्राप्तुकाम इति भाव । 'पुवाणुपुन्नि' पूर्वानुपूर्वी-तार्यकरपरम्परागतमर्यानाम् 'चरमाणे' चग्न्-आचग्न्, 'गामाणुग्गाम दूइज्जमाणे' प्रामानुग्राम द्रवन्-प्रत्येक ग्राम गच्छन-क्रमप्राप्तग्राममत्यजन , 'इहमागए' _इहाऽऽगत , इह-चम्पायामागत इति भाव , 'इह सपत्ते' इह सम्प्राप्त , वह पूर्णभद्रे __कोइ पिना पूछे ही दूसरे से दस प्रकार कहने लगे, (एर परूवेद) कोई कोइ पूछे जाने पर दूसरे से इस प्रकार कहने लगे। क्या कहने लगर इसको सूनकार कहते है(एव खलु देवाणुप्पिया) ह देवानुप्रियो ! (समणे भगव महावीरे) श्रमण भगनान् महावीर कि, (आइगरे तित्थगरे सयसयुद्धे पुरिमुत्तमे जाव सपाविउकामे पुवाणुपुचि चरमाणे गामाणुगाम दहनमाणे इहमागए दह सपत्ते वह समोसढे) जो अपने शासन को अपेक्षा से धर्म के आदि कारक है, चतुर्विध म्घ के स्थापक हैं, स्वयमयुद्ध हैं, एव पुस्पों में उत्तम है, यावत् मोक्ष प्राप्त करने के कामी है, वे अन्य तीर्थकरों की परम्परा से आगत मर्यादा का रक्षण करते हुए एव प्रामानुग्राम विचरण करते हुए आज यहाँ पधारे हुए है, यहा -प्राप्त हुए है, साधुसमाचारा के अनुसार यहाँ समवसृत १५२४ मीया या अरे वा साया, (एर परूनेइ) 3 छ ७१। પર બીજાએથી કહેવા લાગ્યા શું કહેવા લાગ્યા ? આ વાતને સૂત્રકાર પ્રકટ ४३ छ-(ग्य मलु देवाणुप्पिया) हैवानुप्रिया (समगे भगर महानीरे) श्रम भगवान् महावीर (आइगरे तित्वगरे मयसबुढे पुरिसुत्तमे जाव मपाविउकामे पुवाणुपुयि चरमाणे गामाणुगाम दूइजमाणे इहमागए इह मपत्ते इह समोमढे) मे। પિતાની શાસનની અપેક્ષાથી ધર્મના આદિકારક છે, ચતુર્વિધ સંઘના સ સ્થાપક છે, સ્વયસ બુદ્ધ છે તેમજ પુરૂષોમાં ઉત્તમ છે, યાવત્ એક્ષપ્રાપ્ત કરવાની કામનાવાળા છે, તેઓ અન્ય તીથ કરેની પર પરાથી ચાલતી મર્યા દાનું સરક્ષણ કરતા કરતા, એવ ગ્રામાનુગ્રામ વિચરતા વિચરતા આજે અહી પધાર્યા છે અહી પ્રાપ્ત થયા છે, સાધુસમાચારીને અનુસાર અહી
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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