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________________ ૨૪૨ औपपातिक मुलम्-तेण कालेग तेण समएणंसमणस्स भगवओमहावीरस्त वेमाणियादेवा अतियं पाउभवित्था, सोहम्मी-साण-सणंकुमार-माहिद-बम-लतग-महासुक-सहस्सारा-णय-पाणया-रण___टीका-'तेण कालेण तेण समएण' इत्यादि। तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रम णस्य भगवतो महावारस्य 'वेमाणिया देवा मतिय पाउ भवित्या' वैमानिका देवा अन्तिके प्रादुर्वभूवु । के ते वैमानिका देवा । इत्याह-सोहम्मी-साण सणकुमार माहिद-बम-लतय महामुक्-सहस्सारा-णय पाणया रण-अचुयबई सौधर्मे १-शान २-सनत्कुमार ३-माहेन्द्र ४, ब्रह्म' ५-लान्तक ६-महाशुरु ७ सहस्रारा ऽऽनत ९-प्राणता १०ऽरणा११ ध्युतपतय १२, करते रहना यही इनका स्वभाव है। (पत्तेय णामफ-पागडिय-चिंध-मउडा) प्रत्येक के मुकुट अपने अपने नामों से युक्त एव स्पष्ट चिह्न वाले है । (महिड्दिया) ये रब महा सद्वि के धारी है। (जाव पज्जुवासति) पूर्व में वर्णित असुरकुमारों की तरह ये सब ज्योतिषी देव भी भगवान महावीर की सेवा करने लगे ॥ सू० ३६ ।। तेण कालेण' इत्यादि । (तेण कालेण तेण समएण) उस काल और उस समय में (समणस्स भगवो महावीरस्स) श्रमण भगवान् महावीर के (अतिय) समीप (वेमाणिया देवा) वैमानिकदेव (पाउन्भवित्था) प्रकट हुए । वैमानिक देव कौन हैं? सो कहते हे-(सोहम्मी-साण-सणकुमार-माहिंद-वभ-लतग-महासुक-सहस्सारा-णयपाणया-रण-अच्चुय-बई) सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लातक तर मन ७२॥ २७ मे १ तमना स्वमा छ (पत्तेय णामक पागडिय चिंध मउडा) प्रत्येउन भुट पोतपोताना नामाथी युत मे १५४ शिक्षा (महिड्ढिया) से मचा महासद्धिना धा२४ छ (जार पञ्जुवासति) पूर्व ४डस અસુરકુમારની પેઠે આ બધા જોતિષીદેવ પણ ભગવાન મહાવીરની સેવા उरवा दाम्या (स०३६) 'तेण कालेण' इत्यादि (तेण कालेण तेण समएण) ते ४६ मने समयमा (समणस्स भगवओ महावीरस्स) श्रम लगवान महावीरनी (अतिय) पासे (वेमाणिया देवा) मा न देव (पाउन्भवित्था) प्रगट या ते वैभानि नछ त ४९ छ(सोहम्मी साण सणकुमार-महिंद यम लतग-महासुक्क सहस्सारा णय पाणया-रण अच्चुय वई) सौधर्म १, शान २, सनमा२ ३, भाडेन्द्र ४, प्रसार ५, सान्त
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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