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________________ - - - - - ३२८ औपपातिकसूत्रे वस्थ-परिहिया कल्लाणग-पवर-मल्ला-णुलेवणा भासुरवाटी पलववणमालधरा दिव्वेणं वणेण दिव्वेण गंधेणं दिव्वेण रूवेण विविधानि चलागि आभर गानि च येपा त तया, 'विचित्तमाला' पिचित्रमाला-विचित्रा = विविधाऽऽकारा माला पुप्पलजो येपाते तथा, 'मउलिमउडा' मौलिमुकुटा -मौरिपु-मस्तकेषु मुकुटानि येपाते तथा कल्याणग पररपत्य परिडिया' कन्यागक प्रग्वत्र परिहिता कन्याणकानि माङ्गलिकानि प्रवरागि श्रेष्टानि वस्त्रागि पििहता =परिधृतात परिधृतमाङ्गलिकश्रेष्ठ वस्त्रा । 'कल्लाणग-पवर-मल्ला गुलवणा' स्ल्याणक प्रवर मा यानुलेपना कन्याणकारागि प्रवराणि माल्या यनुलेपनानि च येपा ते तया, मालिकमान्यानुलेपनवत । 'भासुरसोदी' भास्वरदेहा-देदाप्यमानगरीरा 'पलप-वणमाल-परा' प्रलम्बनमालाधरा , प्रलम्ब - जुम्बनक तद्युक्ता वनमाला तस्या धरा , वनमाला कण्ठतो जानुपर्यत लम्घमाना भवति तस्या धारका , 'दिव्येण वपणेण' दिव्येन वर्णेन-'दिव्वेण गण' दियेन गधेन-'दिवेण माला) इन्हों ने जो मालाये धारण कर रसी था वे विचित्र पुप्पों से गूंथा हुइ थी । अत ये विचित्र अनेक प्रकार की मालाओं को धारण किये हुए थे । (मउलिमउडा) इनफ मस्तक मुकुटा से शोभित थे । (कल्लाणग पवर वत्य परिहिया) कल्याणकारी एव विशेष कीमती वस्त्रां को इन्होंने धारण कर रसाथा । (कल्लाणग पवर-मल्ला णुलेवणा) आनददायक एव सुन्दर आकार युक्त मालाओं से एव विलेपनों से इनका गरार सजित हो रहा था। (भासुरगोंदी) इनका शरीर विशिष्ट आभा से युक्त हो रहा था । (पलपवणमालधरा) इन्होने जो वनमालाये धारण कर रखी थी वे घुटनों तक लटक रही था। ये मर (दिश्वेण) रूवेण एव फासेण सघाएण मठाणेण) दिव्य वर्ण से, दिव्य गध से, दिव्य स्वरूपसे, इसा प्रकार दिव्य स्पर्श से, दिव्य सहनन से, समचतुरघ सस्थान से, तथा-(दिव्याण इड्ढीए (विचित्तमाला) तमामे रे भाया था उसी ती त विचित्र पाथी ગુથાએલી હતી આમ તેઓએ વિચિત્ર–અનેક પ્રકારની માળા ધારણ કરી डती (मउलिमउडा) तमना भन्त मुटी पणे शाली २। ता (कल्लाणग पवर उत्थ परिहिया) क्या0 मन विशेष हिमती पत्रो तेमाये वा२४ ॥ शक्षा उता (कल्लाणग-पर-मल्ला-णुलेरणा) नाय४ मने सुह२ भाडा२ या भागामाथी तभ० विपनाथी तमना शरी२ सतिता (भासु योदी) तमना शी२ विशिष्ट २ला पणे युदत ता (पलव-वणमालधरा) તેઓએ જે વનમાલાઓ ધારણ કરી હતી તે ઘુટણ સુધી લટકી રહી હતી माया (दिवेण वण्णेण रिश्वेण गण दिव्वेण स्वेण एव फासेण सघाएण सठाणेण)
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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