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________________ औपपावित्र क्खणा पण्णत्ता, तं जहा - कंदणया १, सोयणया २, तिप्पणया ३, विलवणया ४ । रुदज्झाणे चव्विहे पण्णत्ते, न जहाहिसाबंधी १, मोसाणुवधी २, तेणाणुवधी ३, सारक्खणा २८२ नस्य चचारि लक्षणानि प्रनमानि, 'त जहा ' तद्यथा-१ 'कढणया' कहनना = मगन्दा प्रक्षेपरूपा । २ 'सोयणया ' गोचनता=मानसग्लानिरूपा । ३ ' तिप्पाणया' तेपनता= निशन्मोचनम् । 'विलवणया' निल्पनता पुन पुन स्वताशुभकर्मणामुच्चा रणम्, “कादृश पूर्वजन्मनि मया दुक्तमाचरित यफ मधुना मया लभ्यते" इयात्रूिपम् । 'रुज्झाणे चउन्त्रि पण्णत्ते' रौद्र यान चतुर्विध प्रनमम्, 'त जहा ' तयथा - १ 'हिंसा धो' हिंसानुगन्धि-हिंसा = परप्राणहरणरूपामनुनध्नाति = करोत । ति हिंमानुनधि, २ - 'मोसा 6 पण्णत्ता ) इस आर्त यान के ४ चार लक्षण बतलाए गये हैं, ( त जहा ) व इस प्रकार है - (कदणया सोयणया तिप्पणया विलवणया) कदनता - सहित आसुओं को निकालते हुए रोना (१) । गोचनता - मानसिक ग्लानि करना (२) । तेपनता - ऐसा रोटन हो कि जिसमे रोन का आवाज आवे नहा, परन्तु आँसू निकलते रहे (३) । लिपनता वारवार अपन किये हुए कर्मों का जिसमे चिन्तवन करते हुए उच्चारण हो, जैसे-मैन पूर्वजम मे कैसे पाप किये, जिसका फल मुझे भोगना पड रहा है, ये सन आर्त'यान क लक्षण है । इन लक्षणों से आर्त्त यान की सत्ता जानी जाती है । (स्दज्झाणे चउन्विहे पण्णत्ते) रौद्र यान चार प्रकार का कहा गया है, जैसे - ( हिंसाणुनधी, मोसाणुवधी, तेणाणु Tधी, सार+खणाणुवधी) जिस यान में हिंसा का अनुनध हो वह हिंसा नुनधा रौद्रध्यान है । वो विचार रखे। ते या थोथु आत ध्यान के ( अट्टस्स ण झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता ) या यात ध्यानना यार लक्ष मतापेक्षा ), ( त जहा ) ते या प्रकारे - ( कदणया सोयणया तिपणया विल्नणया ) उन्हन-शण्ड साथै આસુ પાડતા २३५ (१), शोयन-मानसिद्ध ग्लानि जश्वी (२), તેન—એવુ રાઇન થાય કે જેમા રેવાના અવાજ આવે નહિ, પરંતુ આસુ વહેતા રહે (૩), વિલપન-વાર વાર પોતે કરેલા માઁનુ ચિત્તવન કરતા મેટેથી વિલાપ કરવા, જેમકે-મે પૂર્વ જન્મમા કેવા પાપ કર્યા કે જેનુ ફળ મારે ભોગવવુ પડે છે. આ બધા આ ધ્યાનના લક્ષણ છે એ લક્ષાથી આતધ્યાનની सत्ता भागी देवाय छे ( रुद्दज्झाणे चडव्विहे पण्णत्ते ) रौद्रध्यान यार अारनु उडेड छे, (त जहां नेभ े (हिंसाणुनधी, मोसाणुवधी, तेणाणुनधी, सारक्खणाणुबधी)
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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