SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 323
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जा - पीयूषवर्षिणी-टीका सु ३० विनयभेदयर्णनम २६१ स्स अणुगच्छणया ८, ठियस्म पज्जुवासणया ९, गच्छंतस्स पडिससाहणया १०, से त सुस्मृसणाविणए । से कि त अणञ्चासायणाविणए ? अणचासायणाविणए पणयालीसविहे पण्णत्ते, तंजहाअरहताणं अणञ्चासायणया १, अरहतपण्णत्तस्स धम्मस्स अण'अनलिप्परगहे इ वा' अनलिप्रगट दनि ना--अनलिप्रग्रह गुम्न्मु से अञ्जलीकरणम् ।७। 'एतस्स अणुगन्छणया' आगतोऽनुगमनता-गुगाटिकम आयान्त प्रति ममुसे गमनम् ।८। 'ठियस्स पन्जुपासणया' स्थितम्य पर्युपासनता-पपिष्टस्य गुदेिरिच्छानुकलसेवा (९। 'गच्छतस्स पडिससाणया' ग यत प्रति माधनता गच्छतो गुनांदे पचाद् गमनगीदता ।१०। 'से त मुम्ममणाविणप' स एप शुश्रूषणाविनय । अनयागातना पृच्छति-से कि त अणचासायणारिणए' अथ कोऽमो अन यागातनापिनर । 'अणचासायणाविणए' अन पायातनाविनय -'पणयालीसविहे पण्णत्ते' पञ्चच पारिशादध प्रनम । 'त जहा' तद्यथा-'अरहताण अणचासायणया' अर्हतामन यागातनताटिको का सरिधि वरना करना (६) 1 (अजलिप्पग्गहे दा) गुर के सन्मुस निा हाय जाडना (७) । (एतस्स अणुगच्छणया) गुवाटिक आ रहे हां तो उनके ममुग्व जाना (८) । (ठियरस पज्जुवासणया) जर वे पेठे हा तो उनकी इच्छानुकृत सेवा करना (९) । (गच्छतस्स पडिससाहणया) जन व जान लगे तो उनके पाढे २ चन्ना (१०)। (से त सुस्मसणाविणए) यह सन शुश्रूपगाविनय है । (से कि त अणञ्चासायणाविणए) अनत्यागातनाविनय कितने प्रकार का है। (अगचासायणाविणए पणयालीसविहे पण्णत्ते) अनत्यागतनापिनय पेंतालीस प्रकार का है, ( त जहा) वे प्रकार य है-(अरहताण अणच्चासायणया) अहंत भगवान् का अपर्णपाट आदि नहीं करना (१), म्मे इ वा) यथाविधिकहना ४२वी न्ये तिमD, मयात् गुरु हिजोनी सविधि पहना रवी (6) (अजलिप्परगहे इ वा) गुरुनी मामे 471431 (७) (पतस्स अणुगरणया) गुरु पधारता हाय त्यारे भनी सामेल (८) (ठियम्स पज्जुनासणया) न्यारे तेमा मह डाय त्या तमनी छाने मनु॥ से ४२सी (6) (गच्छतस्स पडिससाहणया) यार तसा पासागे त्या२ तेमनी पा७१ पा७१ सयु (१०) (से त सुस्सूमणाविणण) ये मया शुश्रूषणाविनय छ प्रश्न-से कि त अणचासायणाविणण) मनत्यानविनय सा जाना छ। उत्त२-(अणचासायणाविणए एणयालीसविहे पण्णते) मनत्याशातना विनय पिacilदीस प्रारना छे, (त जहा) ते १२ २मा -(अरहताण अणच्चामायणया) मईत
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy