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________________ पीयूपवर्षिणी-टोका सू ३० रसपरित्यागतपोवर्णनम ८ पंताहारे, ९ लूहाहारे, १० तुच्छाहारे, से त रसपरिचाए। से कि त कायकिलेसे ? कायकिलेसे अणेगविहे पपणत्ते, तजहा-ठाणहिडए १, उकुडुयासणिए २, पडिमटाई ३, तमम्लतझमिश्रित पर्युषित नाऽन, नदाहारा यम्य स तथा ८ ! 'लूहाहारे' रूक्षाहार - रूक्षम् अग्निग्धमन्नमेगाहारो यम्य स तथा ९ । 'तुन्छाहारे तुलाहार -तुच्छ -अपोऽसारश्च स्यामाकानिनिष्पारित आहागे यस्य म तथा१० इति । उपमहानाह-'से त रसपरिचाए' म एप रसपरित्याग इति । __इत्थ दाविध रसपरित्याग वर्णयित्वा कायक्लेग वर्णयति-से कि त कायकिलेसे' अथ कोऽमी कायोग ( उत्तग्माह-'कायकिलेसे अणेगविहे पण्णत्ते' कायक्लेशोऽनेकविध प्रनम । 'तजहा' तद्यथा-'ठाणदिइए' स्थानस्थितिक -स्थान कायोसर्ग , तेन स्थितिर्यस्य स स्थानस्थितिक ११ । 'उक्कुइयासगिए' उकुटुकाऽऽसनिक -भूमावसलग्नपुतेन प्रात है, अपर प्रान्तका अर्थ पासा अन भी है । इसका आहार करना प्रान्ताहार ह (९)। (लूहाहारे ) रूक्षाहार-रुक्षस्वभाववाला कुलथी आदि का आहार रूक्षाहार है (९) । (तुन्छाहारे) तुहार-असार-जिसम कुछ भी सार नहीं है ऐसा श्यामाक, मनाचा आदि तुच्छ धान्य का आहार तुच्छाहार हे (१०)। (सेत रसपरिचाए) ये तस प्रकार क रस परियाग तप है । अन कायक्लेश का वर्णन सूत्रकार करते है-(से कि त कायकिलेसे) प्रश्न-वह कायाले तप कितने प्रकार का है। (फायकिलेसे अणेगविहे पण्णत्ते) उत्तरकायक्रेश तप अनेक प्रकार का है, (त जहा) वे प्रकार इस तरह ह-(ठाणद्विइए) स्थानस्थितिक, स्थान शब्द का अर्थ कायोसर्ग है, इस कायोसर्ग से जिसकी स्थिति सर्वदा रहती है वह स्थानस्थितिक है । ( उक्कुडयासहिए ) उत्कुटुकासनिक-उकडु-आसन से बेठना પ્રાન્ત છે, અથવા–પ્રાન્તને અર્થ વાગી અન પણ છે, તેને આહાર કરવો त प्रान्ता२ (८) (लहाहारे) क्षाडा२-२ स्वभावना थी माहिनी माहार झाडा२ छ (6) (तुच्छाहारे) तु-छाडार-मसार-2 अन्नमा आई પણું સાર નથી એવું સામે મલીચા આદિ તુરછ ધાન્યનો આહાર તે तु छाडा२ ७ (१०) (से त रसपरिचाए) मा इस डारना २सपरित्यागत छ ६२ सयलेशनु पनि सूत्रधार ४२-(से कि त कायकिलेसे) प्रश- यश त५३८सा प्रा२ना छ ?-( कायकिलेसे अणेगविहे पण्णत्ते) Hश मने 4t२ना छ, (त जहा) और भाभ-(ठाणद्विइए) स्थानस्थितियान राना અર્થે વાત્સર્ગ છે. આ વાત્સગથી જેની સ્થિતિ સર્વદા રહે છે તે
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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