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________________ १४३ पीयूषषिणी-टीका सु. २३ भगवदन्तेयामिघर्णनम् पव्वडया, भोगपव्वइयो, राडण्ण-णाय-कोरव्व-खत्तिय-पवइया, भडा जोहा सेणावई पसत्थारो सेट्टी इव्भा, अण्णे य वहवे 'भोगपन्नइया' भोगप्रवजिता -ऋषभदेवेन ये पूर्व गुरत्वेन स्थापितास्तद्वराजा भोगा इत्युच्यते, भोगाथ ते प्रत्रजिता =दीक्षिता भोगप्रजिता , भोगकुलोपन्ना टाक्षिता इत्यर्थ । 'राइण्ण-णाय-फोरव्य-खतिय-पन्चइया' राजन्य-जात-कौरव-क्षत्रिय प्रजिता-ये तेनैव मित्रत्वेन व्यवस्थापितास्तवराजाश्च गजन्या उच्यन्ते, ज्ञाता इक्ष्वाकुवगविशेपे जाता , कौरवा-कुरुवगोपन्ना , 'खत्तिय क्षत्रिया -क्षतात् त्रायन्ते इति क्षत्रिया , ते राजन्यादय प्रत्रजिता , 'भडा'-भटा -चारभटा -पदातय , 'जोहा 'योधा -भटभ्यो विशिष्टतरा सहनपरिमितैरपि रिपुसैनिकैरेकाफिनोऽपि योदु समया । 'सेणाई' सेनापतय -सैन्यनायका , 'पसत्यारो' प्रशास्तार -शासका नातिशास्त्रधुरीगा , ' सेट्ठी' श्रेष्ठिन -लक्ष्मीदेवताऽव्यासितसौवर्णपटमण्डितमस्तका , 'इन्भा' इभ्या उभो हस्ता तत्प्रमाणपरिमितसुवर्णादिराशिस्वामिन । एते स प्राजिता अतेवासिनो जाता । ये-च(भोगपवइया) जिन्हे आदिनाथ प्रभुने गुररूप से स्थापित किया या उन भोगा के वा के थे । कितनेक (राडण्ण-गाय-कोरब-खत्तिय-पव्वइया) प्रभुन जिहे अपने मित्ररूप से स्थापित किया था उन राजन्यों के वा के थे, कितनेक जात-इक्ष्वाकुरा के थे, कितनेक कौरव-कुरुवा के थे, कितनेक क्षत्रियवश के थे। ऐसे हो (भडा जोहा सेणाई पसत्यारो सेट्ठी इब्भा) भट सामान्यवार, योधा अकेले ही हजारों गजुलैनिकों से युद्ध करने में समर्थ वीर, तथा सेनापति, प्रशास्ता न्यायाधाश, सेठ-सर्वापेक्षा अधिक धनी होने का सूचक राजप्रदत्त पट्टबन्ध को धारण करने वाले नगरसेठ, और इभ्य= हाथी प्रमाण सुवर्णादि राशिके स्वामी भी भगवान् के समीप प्रवजित हुए थे। उदास (भोगपव्वइया ) भने माहिनाथ प्रभु शु३३पे स्थापित र्या उता ते सोम-शनाता टमासे राइण्ण-णाय कोरव्य-सत्तिय पव्वइया) પ્રભુએ જેમને પિતાના મિત્રરૂપે સ્થાપિત યા હતા તે રાજન્ય-વ શના હતા કેટલાએક જ્ઞાત= ઈવાકુવશના હતા કેટલાક કૌરવ=કુવાના હતા, 32 क्षत्रिय शना तो तभ (भडा जोहा सेणावई पसत्थारो सेट्ठी इभा) ભટ સામાન્યવીર યોદ્ધા-એકલાજ હજારે શત્રુ સનિક સાથે યુદ્ધકરવામાં સમર્થ વીર, તથા સેનાપતિ, પ્રશાસ્તા=ધારાશાસ્ત્રમાં નિપુણ, સેઠસવની અપેક્ષાએ વધારે પૈસાદાર હોવાનું સૂચક રાજ્યતરફથી અપાએલ પટ્ટબ ધ (ઈલકાબ) ધારણ કરવા વાળા નગરશેઠ, અને ઈભ્ય હાથી જેવડા સુવર્ણના ઢગલાના સ્વામી પણ ભગ पान पासे प्रति या तस (अण्णे य बहवो एवमाइणो) भगवाननी पासे भी
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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