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________________ २३० औषपातिकसूत्रे ताणं सरणगई पडद्या अप्पडिहय-वर-नाण-दसण-धराणं वियहर्थिताना भव्याना रक्षसक्षणेभ्य । अतण्य तेषा भत्र्याना 'मरणगई' शरणगतिभ्य - आश्रयस्थानेभ्य , 'पइट्ठा' प्रतिष्ठाभ्य -कालयेऽपि अपिनाशिनात् स्थितेभ्य , 'दीवो' इत्यादीनि 'पइट्ठा' इत्यतानि चतुर्थ्ययं प्रथमान्तानि, अनेकवचन नपुमकर स्रोत्व चाविवक्षितम् । 'अप्पडियहय-वर-नाण-दसण-धराण' अप्रतिहतपर-नान दर्शन-धरेभ्य -प्रतिहत-भित्यायावरणस्पलित-न प्रतिहतम्-अप्रतिहत, नानञ्च दर्शनञ्चेति ज्ञानदर्शने, यतोऽप्रतिहते अतएव वरे-श्रेष्ठे च ते ज्ञानदर्शने वरनानदर्शने केलज्ञानकेरलदर्शने, अप्रतिहते वरज्ञानदर्शने अप्रतिहतपरनानदर्शने, तयोर्धरा - अप्रतिहतवरज्ञानदर्शनधरा - सम्यूगारगरहितकेवलनानकेवलदर्शनधारिगस्तेम्य । 'वियदृच्छउमाण' व्यावृत्तच्छमभ्य -छाद्यते-आनियते केवलज्ञानकेबलदर्शनगुणाद्यामनोऽनेनेति छम--नानावरणीयादिक कमाष्टक, व्यावृत्त-निवृत्त छम येभ्यस्ते व्यावृ के जो त्राता है ऐसे प्रभु के लिये नमस्कार हो। (सरणगई ) भव्यो के लिये आश्रयस्थानस्वरूप प्रभु के लिये नमस्कार हो । ( पडद्रा) कालय में भी अविनश्वरस्वरूप प्रभु के लिये नमस्कार हो (दीवो) यहा से लेकर (पइद्वा) तक के समस्त विशेषण चतुर्थी विभक्ति के अर्थ मे प्रथमात प्रयुक्त हुए है । यहा एकवचन, नपुसकत्व एव स्त्रीच अविवक्षित है। (अप्पडिहय-वर-नाणदसण-धराण ) जो अप्रतिहत अन त नान और अनन्त दर्शन के धारक हे, उनके लिये नमस्कार हो। ( वियदृच्छउमाण) जिनके द्वारा आत्मा का स्वभावभूत केवलज्ञान एव केवल दर्शन आवृत होता है ऐसे आठों ही कर्म 'छम' शब्द से गृहीत हुए है, यह छद्म जिनकी आत्मा से सदा के लिये दूर हो चुका है सेवा प्रभुन नभ२४।२ डो (ताण) थी अथातप्राणिमाना रे बाण मर्थात रक्ष सेवा प्रभुने नभ-४।२ डो ( सरणगई ) मव्याने भाटे माश्रय स्थान३५ प्रभुने नभ२७१२ डी (पइट्ठा) नए मा अविनाशी२५३५ प्रभुने नभ २०१२ डो (दीपो) पडी थी सधने (पइट्ठा) सुधानमा विशेष यता मिति અર્થમાં પ્રથમાન્ત વપરાયેલા છે, અહી એકવચન નપુસકત્વ (નાન્યતર જાતિ) समर सील ना ति] विपक्षित छ [अप्पटिहय पर नाण दसण धराण] 5 અપ્રતિહત અન તજ્ઞાન અને અને તે દર્શનના ધારક છે તેમને નમસ્કાર ही (वियट्रच्छउमाण) मना ६१२। मामाना स्वभावभूत उस ज्ञान तभ०४ કેવલ દર્શન આવૃત થાય છે એવા આઠેય કમ “છ” શબ્દથી ગૃહીત થાય
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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