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________________ ÅR Y औपपातिकसूत्रे 1 1 शयपत्रंशद्वागीगुगोपेतत्यात्, तेभ्य 'लोगनाहाण रोकनायेभ्य, लोकाना= भव्याना नाथा - नेतारो योगक्षेमकारित्वादिति लोकनाथास्तेभ्य । ' लोग हियाण सर्वप्राणिगणस्तम्मे हिता रक्षोपा पथप्रदर्शकबा लोगपईराण लोकप्रतीपेभ्य, लोकस्य भव्यजनसमुदायस्य लोकहितेभ्य - लोक - एकत्रिया लोकहितास्तेभ्य । प्रदीपास्त मनोऽभिनिनिनादिमिया नतम पटल यपगमेन विशिष्टात्मतत्वप्रकाशक त्वात्प्रदीपतुयास्तेभ्य । यथा प्रदीपस्य सकलजनायें तुल्यप्रकाशकत्रेपि चयुष्मत एव तत्प्रकाशसुखभाजेो भवन्ति नवधास्तथा भव्या एय भगवन्नुभारममुदभूतपरमानन्दसन्दोहभाजेो भवन्ति नाऽभच्या इति प्रतिनधि प्रदीपच्टान्त, अत एव च, लोकपदेन भन्यानामेन ग्रहम् । 'लोगपज्जोयगराण' लोकप्रयोतकरभ्य - 7 , चौतीस अतिशयों एवं पेंतीस वाणी के गुणों से युक्त होन से प्रभु लोकोत्तम कहलाते है, ऐसे उनके लिये नमस्कार हो । ( लोगनाहाण ) भव्यमानों के योग-क्षेम-कारी होने से लोकनाथ प्रभु को नमस्कार हो । ( लोग हियाग ) एकेन्द्रिय प्राणियों से लेकर पचेन्द्रिय पर्यन्त समस्त जीवों से व्याप्त इस ग्लोक के लिये रक्षाके उपायभूत मार्ग के प्रदर्शक होने से लोकहितस्वरूप प्रभुके लिये नमस्कार हो । (लोगपवाण) भव्यजनों के मन मे अनादिकाल से ठसाठस भरे हुए मिथ्यात्वरूपी अन्धकार के पटल के विनाश से निशिष्ट आत्मतत्त्व के प्रकाशक होने से भगवान् प्रदीपतुल्य है, जिस प्रकार दीपक सकल जीवों के लिये समान प्रकाशक होता हुआ भी चक्षुष्मान जीवा के लिये विशेष आनंदप्रद होता है उसी प्रकार प्रभु को लखकर भव्य जीव ही अमन्द "आनद के सद्रोह से सुखी हुआ करते हैं, ऐसे लोक के प्रदापस्वरूप को नमस्कार પાત્રીશ વાણીના ગુણાથી યુકત હેાવાથી પ્રભુ લાાત્તમ રહેવાય છે,' તેમને नभस्ठार हो (लोगनाहाण) लव्य योना योगक्षेम डरनार होवाथा बोडनाथ अलुने नमस्कार हो (लोगहियाण) खेडे द्रिय प्रशिगोथी भाडीने पयेद्रिय પર્યન્ત સમસ્ત જીવાથી બ્યાસ આ લાકના માટે રક્ષાના ઉપાયભૂત માના अहर्श होवाथी सोडडितस्य प्रभुने नभस्तार से (लोगपईनाण) (लव्य नाना મનમા અનાદિકાલથી સાઠસ ભરેલા મિત્વરૂપી અ ધકારના સમૂહના વિનાશથી વિશિષ્ટ આત્મતત્વના પ્રકાશક હોવાથી ભગવાન પ્રદીપ સમાન છે, જેમ દીવેા બધા જીવાને સમાન પ્રાળક હોય છે છતા ચક્ષુવાળા જીવાને વિશેષ આનદપ્રદ થાય છે તેવી રીતે પ્રભુને જોઈ ભવ્ય જીવા જ ઘણા આન ૪ મેળવીને सुख आस पुरे छे, सेवा बोडना अनयस्पश्यने नभर है। [लोयपजोयगराण ]
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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