SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पीयूपषिणी-टीका सु १७ प्रवृत्तिव्यामृतस्य फूणिराजसमीपगमनम १०७ मड, पडिणिस्खमित्ता चपाए णयरीए मज्झमझेणं जेणेव कोणियस्स रणो गिहे जेणेव वाहिरिया उवठ्ठाणसाला जेणेव कूणिए राया भिभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छड, उवागच्छि परिमागतो न्यूनानि, महा_गि-महान् अतिशय -अघो-मूल्य येषा तानि, आनियन्ते= सम्यग् धार्यन्त इयाभरणानि- अलङ्कारा , तैरलकृत शरार यस्य स तथा, अन्पनहुमूल्यभूपणभूपितदेह इत्यर्थ , 'सयाओ गिहाओ' स्वकाद् गृहाद्, 'पडिणिक्खमइ' प्रतिनिष्क्राम्यति-निर्गच्छति। 'पडिणिक्वमित्ता' प्रतिनिष्क्रम्य-निर्गय, 'चपाए णयरीए' चम्पाया नगर्या, 'मज्झमझण' मध्यम येन-चतुर्तिगपेक्षम यभागेन, 'जेणेव कोणियस्स रण्णो गिहे' यत्रैव कोणिकस्य राजो गृह-भवनम्, 'जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला' यत्रैव बाह्या उपस्थानशाला-आस्थानमण्डप , 'जेणेव कूणिए राया भिंभसारपुत्त' यव कोणिको राजा भिंभसारपुत्र , 'तेणेव उवागन्छइ' तत्रैवोपागच्छति, 'उवागच्छित्ता' उपागत्य, 'फरयलपरिग्गहिय' भार से अल्प एव बहुमूल्य आभरण भी शरीर पर धारण किये। इस प्रकार सज-धज कर वह (सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ) अपने घर से निकला, (पडिणिक्खमित्ता चपाए गयरीए मज्झमझेण जेणेव कोणियस्स रण्णो गिहे) घर से निकलकर यह चपानगरी के ठीक म य के मार्ग से होकर जहा कोणिक राजा का प्रासाद था, (जेणेव वाहिरिया उवट्ठाणसाला) जहा पर बाहरी उपम्थानगाला थी, और (जेणेव कृणिए राया भभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ) उस उपस्थानशाला में, जहाँ भभसार के पुत्र कोणिक राजा बैठे हुए थे, वहा पहुँचा । (उवागन्छित्ता) वहाँ पहुँचते ही सर्वप्रथम उसने (करयलपरिग्गहिय વજનના તેમજ બહુમૂલ્ય આભરણ પણ શરીર ઉપર ધારણ કર્યા આ प्रहारे शार उगने त (सयाओ गिहाओ पडिणिक्समइ) पाताने धेरथी नीज्ये! (पडिणिसमित्ता चपाए गयरीए मज्झमझेण जेणेव कोणियस्स रण्णो गिहे) धेरथा नाजीने त य पानसरीना सम२ भायमानमा यईने त्या आणि सकतनी भडेस खत (जेणेव बाहिरिया उपदाणसाला) भने कन्या माह ९५२थान शादा उनी, तथा (जेणेव कूणिए राया भभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ) તે ઉપસ્થાન–શાલામાં જ્યા ભ ભચારના પુત્ર કોણિક રાજા બેઠા હતા ત્યા पक्षाच्या (उवागच्छित्ता) त्या पहायता सर्व प्रथम तेणे (करयलपरिम्गहि
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy