________________
पीयूषवर्षिणी-टोका व १६ भगवन्महावीरस्यामिश्रणनम्
९५
पीण रइय-पासे उज्जुय-सम- सहिय - जच्च - तणु - कसिण- णिडआइज - लडह-रम णिज- रोम-राई झस-विहग - सुजाय - पीण - कुच्छी झसोयरे सुइकरणे पउम वियड - णाभे गगावत्तग-पयाहिणावत्त
,
' मियमाइय - पीण - रइय-पासे ' मितमानिक-पोन - रतिद्र- पार्श्व तत्र- मितमानिकीसमुचितपरिमाणवन्तौ पीनौ पुष्टौ, रतिदौरम्यौ, पावी कक्षाभ्यामधो वामदक्षिणगरीरभागौ यस्य स तथा, 'उज्जुय - सम-सहिय - जच्च - तणुक सिण- गिद्ध - आइज - लडहरमणिज्ज - रोमराई ऋजुक-सम-महित - जाय-तनु- कृष्ण - स्निग्धा - ssदय-ललित
रमणीय - रोमराज,
ऋजुकाणा - सरलाना,
सममहिताना - मिलिताना,
जायाना
'
"
स्वजातायेषूत्तमाना, तनूना-सूक्ष्माणा, स्निग्धाना - सरसानाम्, आदेयानाम् उपादेयाना, लडह ' लल्तिाना== रमणीयाना - मनोरमाणा रोम्णा राजि पक्तिर्यस्य स तथा सरलसूक्ष्म - कृष्ण - सरस रम्य - रोमराजिमान इयर्थ । 'झस - विहग - सुजाय- पीण-कुच्छी झप विहग - सुजात - पान - कुक्षि - मत्स्य पक्षिणोरिव सुजात=सुन्दर, पीन पुष्ट, कुक्षि - उदर यस्य स तथा, 'झसोयरे' झपोदर - मानवत्सुन्दरोन्रवान् इति भाव । ' सुइकरणे" शुचिकरण - शुचीनि परिनागि, करणानि - इन्द्रियाणि यस्य स इन्द्रियाणा मलाहित्वेऽपि भगवदतिजयाद्-निर्मलतया निर्मल - निरुपलेपेन्द्रियवान् इति भाव । पउम - विग्रड
*
था, उचित प्रमाण से युक्त था, सुन्दर था, शोभन या, तथा-परिमित मात्रावाला, पुष्ट एन रम्य था । रोमराज ( उज्जुय-सम सहिय जच्च तणु कसिण-गिद्ध आइज्ज लडहरमणिज्ज-रोम राई ) सरल, परस्पर में मिलित, उत्तम, पतली, काली, चिकनी, उपादेय एव अत्यन्त मनोहर थी । उनकी कुक्षि (झस विहग सुजाय पीग-कुच्छी) मत्स्य एव पक्षी के समान सुन्दर और पुष्ट या । (झसोयरे ) उनका उदर मत्स्य के जैसा सुन्दर या । ( सुइकरणे ) इन्द्रियों यवपि समानत मनाहिना है, तथापि अतिशय के प्रभाव
હતા, શેાલન હતેા, તથા મર્યાદિત ઘાટને પુષ્ટ તેમજ રમ્ય હતા. રામજિ ( शरीर उपरना पाजनी पति ) ( उज्जुय - समसहिय- जन्च-तणु-कसिण- णिद्ध आइज्ज-लडह- रमणिज्ज-रोम - राई ) सरभी, परस्परभा भजी गयेली, उत्तम, પાતળી, કાળી, ચિકણી, ઉપાદેય તેમજ બહુજ મનેહર હતી તેમની ડાખ (स) ( इस - विहग-सुजाय- पीण- कुच्छी) भत्म्य तेभन पक्षीना नेवी सुहर ने पुष्ट हुती (झसोयरे ) तेभनु उहर (पेट) भाछसीना नेवु सुहर हेतु ( सुइकरणे ) छ दियो लेंडे वलावधी भसवाहिनी छे तो पशु
अतिशयना