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प्रियदर्शिनी टीफा अ० १ मालाचरणम् तिशय का सूचन किया गया है, क्योंकि-सकलगुणनिधान-अनन्तचतुष्टयादिरूप शुद्ध निर्मल गुण, केवल ज्ञान जागृत होने पर ही आत्मा में प्रकट होता है ॥ १॥
इस प्रकार चोतीस अतिशयो से विराजमान श्रीवर्धमान प्रभु को नमस्कार कर टीकाकार अव उनकी दिव्यदेशनारूप इस शास्त्र की टीका करने का कारण निर्दिष्ट करते है-'चरमजिन०' इत्यादि।
(प्राणिकल्याणकर्ती) ससारस्व समस्त प्राणियो के करयाण करने वाली जो (चरमजिनवरस्य) अन्तिम तीर्थंकर श्री भगवान महावीर स्वामी द्वारा (चरमसमयजाता) अन्तिम समय मे अर्थात् निर्वाणासन्न समय मे दी गई (देशना) देशना (सोत्तराख्या) वह उत्तराभ्ययन नाम से प्रसिद्ध है। वह उत्तराभ्ययनम्प देशना (भविजनाना) भव्यात्माओ के लिये (सुप्रवेद्या) सुयोध्य एच (सुहृद्या) हृदयगम्य हो, (इति) इस हेतु से (अस्याः) इसकी (सरलसरण्या) सुगमशैली से (वृत्तिरातन्यते) वृत्ति की रचना करता हूँ॥२॥ ___अब टीकाकार गुरुको नमस्कार करते है-'सगुप्ति०' इत्यादि । विशेषी प्रमुभा " ज्ञानातिशय "तु सूचन राय 2, 3 3-45स गुYનિધાન–અનઃચતુષ્ટયાદિરૂપ શુદ્ધ નિર્મળ ગુણ, કેવળજ્ઞાન જાગૃત થવાથી જ આત્મામાં પ્રગટ થાય છે
આ પ્રકારે ગ્રેવીસ અતિશયેથી વિરાજમાન શ્રી વર્ધમાન પ્રભુને નમસ્કાર કરી ટીકાકાર હવે એમની દિવ્ય દેશનારૂપ આ શાસ્ત્રની ટીકા કરવાનું २५ नि: ॥ ७२ छ चरमजिन० ऽत्यादि
प्राणिकल्याणकता -24 मारना समस्त प्राणियोनु उदया उसावाणी है चरमजिनवरम्य-सा ति4. श्री सजवान महावीर स्वामी द्वारा चरमसमयजाता-तिम समये कोटले निर्वामिन समये मावामा मास देशना हेगना-सोत्तरारया-2 उत्तययन नामथी प्रसिद्ध छे ते उत्त। ध्ययन३५ हेगना भरिजनाना-सव्यात्मामाने भाटे सुप्रवेद्या-सुराव्य सभा सुहृद्या-त्य सभ्य मनो इति-- तुथी अस्या -मानी सरल्सरण्या-सुगम शैक्षीया वृत्तिरातन्यते-वृत्तिनी श्यना ७३ छु
हुवे टी50 शुरुन नभ४२ ४३ छ-'सगुप्तिः' इत्यादि