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उत्तराज्यपनसरे __कृते संस्तारके शयनार्थक्रियाकारित्व विधते, करणसमये तु नास्ति ताशी अर्थक्रिया, अतः क्रियमाण कृतमिति व्यपदेशः कथ स्यात् । विश्व-क्रियमाणमिति वर्तमानव्यपदेशः, कृतमिति च भूतव्यपदेशा, वर्तमानत्य भूतत्य च परसरविरु द्धमिति परस्परविरुद्धयोस्तयोरेकता न स्यात, वर्तमानध्वसमतियोगित्लस्य भूतत्वादिति महावीरस्वामिना यत् प्रतिपादितम्-'करेमाणे कठे चलमाणे चलिए' रहा है वह उदय में आचुका है" सो वह सय मिथ्या है, कारण कि क्रियमाण सस्तारक में शयनरूप अर्थक्रिया के प्रति साधकस्व का अभाव होने से वहां कृतत्व नहीं आ सकता है। ___ सस्तारक (विस्तर) करने के याद ही उसमे शयनादिरूप अर्थ क्रियाकारिता आती है, परन्तु सस्तारक करने के समय में उसमें उस प्रकार की अर्थक्रियाकारिता नहीं है, फिर "क्रियमाण कृतम् "-क्रिय माण कृत होता है-यह व्यपदेश कैसे हो सकता है ?।
और भी-"क्रियमाणम्" यर वर्तमान काल का कथन है और "कृतम्" यह भूतव्यपदेश है। भूत और वर्तमान परस्पर विरुद्ध है, और परस्पर विरुद्ध दो पदार्थो की एकता नहीं हो सकती है, क्यों कि वतः काल में विद्यमान जो ध्वस उसके विरोधी का नाम है भूत, एतादृश भूत और वर्तमान ये दोनो एक अधिकरण मे नही रह सकते हैं। फिर जो महावीर स्वामी ने कहा है कि क्रियमाण कृतम्, चलत् चलितम् ચુકયુ છે, જે ઉદયમાં આવી રહેલ છે તે ઉદયમાં આવી ચુકેલ છે, એ બધુ સઘળું મિથ્યા છે કારણ કે, ક્રિયમાણ સસ્તારમાં શયનરૂપ અર્થ ક્રિયામાં સાધકત્વના અભાવથી ત્યા કરેલ છે એમ આવી શકતું નથી
__ सस्ता (पथारी) या ५ मा शयना९ि३५ " क्रियाकारिता" भाव छ ५२न्तु स२॥२४ ४२ती मत तातमा तवा नी. 'अर्थक्रिया कारिता' माती नयी तो पछी क्रियमाण कृतम-यमा त थाय छ, भवा વ્યવહાર કેવી રીતે થઈ શકે ?
जी " क्रियमाणम्" से वर्तमान ४थन छ भने “ कृतम् " में ભૂતકાળને વ્યવહાર છે ભૂત (કાળ) અને વર્તમાન એ બને પરસ્પર વિરૂદ્ધ અર્થવાળા છે એટલે પરસ્પર વિરૂદ્ધ એવા બે પદાર્થોની એકતા થઈ શકતી નથી કેમકે વર્મમાનકાળથી વિરૂદ્ધ ભૂત (કાળ) છે, એવા પ્રકારને ભૂત અને વર્તમાન એ અને એક અધિકરણમાં રહી શકતા નથી તો પછી મહા वीर साभीये २ ४ छ, “क्रियमाण कृतम् ॥ “चलत् "-विशेष