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प्रियदर्शिनी टीका म०२ गा २५ आक्रोशपरीपहजये क्षमाधरमुनिदृष्टान्त ४३३
उक्तार्थमेव विशदीकुर्वन् पाहमूलम् सोचाणं फरुसा भासा, दारुणा गामकटगा।
तुसिणीओ उवेहेज्जा, ने ताओ मणसी करे ॥२५॥ छाया-श्रुत्वा खलु परुपा भापाः, दारुणा ग्रामकण्टकाः।
तूष्णीकः उपेक्षेत, न वा मनसि कुर्यात् ॥ २५ ॥ टीका-सोच्चाण' इत्यादि।
दारुणाः दारयन्ति-पिदारयन्ति सयमधैर्यमिति दारुणा दु सहाः, मनसि वजाघातकारिका इत्यर्थः, ग्रामकण्टकाः ग्राम: इन्द्रियाणा समूहस्तस्य कण्टका र कण्टकाः दुखोत्पादकत्वेन प्रतिकूलाः परुपा-क्षाः कठोरा, भापावचनानि, श्रुत्वा खलु तूष्णीका मौनावलम्बी सन् , उपेक्षेत-ता भापाअवधीरयेत्-नाद्रियेत । 'उवेहिज्जा' जाता है। इनके इस व्यवहार को मुझे समताभाव से सहन करता चाहिये, क्यों कि इससे मेरे अधिक कर्मों की निर्जरा होगी, इस निर्जरा में यह मेरा उपकारी है। अतः इस उपकारी के प्रति मै खेप करूँगा यह मेरी कितनी अज्ञानता होगी। ऐसा विचार कर साधु आक्रोशपरीपह पर विजय प्राप्त करे ॥ २४ ॥
उपरोक्त अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहते हैं-'सोच्चाण'-इत्यादि
अन्वयार्थ-(दारुणा-दारणाः) सयमरूपी धैर्यको विदारणकरने वाली मन मे वज्र के तुल्य दुस्सह आघात पहुंचाने वाली तथा (गामकटगाग्रामकटका.) इन्द्रियों को कटकतुल्य दु ख की उत्पादक होने से प्रतिकूल (फरसा-परुपा.) रूक्ष-कठोर ऐसी (भासा-भाषा:) लोगों की असभ्य व्यक्तियोंकी भाषाओं-वचनों को (सोच्चा ण-श्रुत्वा खलु) सुनकर मुनि (तुसिणीओ उवेहेज्जा-तूष्णीकः उपेक्षेत) चुपचाप रहा हुवा-मौन धारण સમતાભાવથી સહન કરવું જોઈએ કેમકે એથી મને અધિક કર્મોની નજર થશે એ વિચાર કરી સાધુ આક્રોશ પરીષહ ઉપર વિજય પ્રાપ્ત કરે ૨૪
6५शतमन २५८ ४२ता छ-' सोच्चा ण' त्यात सन्पयार्थ-दारुणा-दारुणा सयभ३पी धैर्यन विहार ४२पावाजी मड-मनमा १०॥ तुल्य माघात पडल्यापावाणी गामकटगा-ग्रामकटका तथा न्यान ४८४ समान हुमने. त्याहन १२नार पाथी प्रतिपूण फरसा,-परुपा ३६ १२ ग्रेवी भासा-मापा ससक्ष्य बना क्यनाने सोच्चाण-श्रुत्वा खलु साणीन भुनि तुसिणीओ उवेहेज्जा-तूष्णीक उपेक्षेत युपया५२डी, भीन धारण १शत उ० ५५