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________________ उत्तराध्ययनस्से अथ नैपेधिकीपरीपहजय माहमूलम्-सुसाणे सुन्नगारे वो, रुर्खमूले व एगओ। अकुक्कुओ निसीएजा, न य वित्तीसए पर ॥२०॥ छाया-मशाने शून्यागारे पा, क्षमूळे या एकमः। कौकुच्या निपीदेत् न च पित्रासयेत् परम् ॥ २० ॥ टीका-'सुसाणे' इत्यादि। श्मशाने-शरस्थाने, वा अवधा, शन्यागारे-निर्जनगृहे, वा-अथवा, वृक्ष मूले वृक्षाधस्तले, मुनिः एकः द्रव्यतः एकाकी प्रतिमाऽपेक्षया, भावतो-मुनि गणस्थितोऽपि रागद्वेपरहितः, अकौकुच्या अशिष्टचेष्टारहितः-विषयचेटावर्जितः सन्नित्ययः, निपीदेव भयरहित यतनापूर्वकमुपरिशेदित्ययः। च-पुनः मुनिस्तत्रोपविप्र. सन् , परम्-अन्य जीव द्वीन्द्रियादिक, न निवासयेत् तत्रस्थ जीन स्थानभ्रष्टादिक और आत्मकल्याण की सिद्धि की। इसी तरह समस्त साधुओं को चर्यापरीपद पर विजय पाने में प्रयत्नशील रहना चाहिये ॥१९॥ अव दसवें नेपेधिकीपरीपद को जीतने के लिये सूत्रकार करते है-'सुसाणे '-इत्यादि । ___अन्वयार्थ-मुनि को (सुसाणे-श्मशाने) श्मशानमे (वा) अथवा (सुनगारे-शून्यागारे, शून्य घर मे (वा)या (रुक्खमूले-वृक्षमूले) वृक्ष के नीचे (एगओ-एकका) एकाकी द्रव्य-से प्रतिमा की अपेक्षा अकेले ,तथा भाव की अपेक्षा मुनि समुदाय में रहते हुए भी रागद्वेषरहित एव (अकुकुओ-अकौकुच्य.) अशिष्ट चेष्टा से रहित होते हुए (निसीएज्जानिपीदेत्) भयशून्य होकर यतनापूर्वक रहे । (य-च) तथा वहा पर આત્મકલ્યાણની સિદ્ધિ મેળવી આ પ્રમાણે સર્વ સાધુઓએ ચર્યાપરીષહ ઉપર વિજય મેળવવા પયત્નશીલ રહેવું જોઈએ ૧૯ ३ सूत्रा२ ६शमा नैपिडी५१४२ ता भाटे हे छे–'सुसाणे त्या स-क्याथ-मुनिष सुसाणे--स्मशाने स्मशानभा "ar Aथा सुन्नगारे-शून्यागारे सूना मेवा घरमा " वा " मथपा रुम्समूले-वृक्षमूले वृक्षनी नीय एगओ-एकक એકાકી દ્રવ્યથી પ્રતિમાની અપેક્ષાએ એકલા તથા ભાવની અપેક્ષાએ મુનિ સમુદાયમાં २ता छता ५ रागद्वेष २डित अने. अकुक्कुओ-अकौकुच्य मशिष्ट व्याथी २हित मनीन निसिएज्जा-निषीदेत् सय २क्षित थई यतनापूर्व नै य-प
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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