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प्रियदर्शिनी टीका ०२ गा ६-७ शीतपरीपहजय
३०१ पायवश्च तुपारासारसगादतिशय शिशिराः प्राणिना शरीराणि परितः सातिशय पीडयन्ति । अनवरतगीतपातजनितव्यथावारणाय वालकाः काष्ठरवण्डादीनि समाहत्यैकन पति प्रज्वाल्य प्रसारितपाणयस्तापमासेवन्ते । यत्र प्रतिक्षण प्राणिना प्राणाः प्रखर शीतवेदनाभिरुद्विग्ना भान्ति । ___वदा स मुनिः खलु-निश्चयेन, जिनशासन जिनवचनरहस्य श्रुत्वा 'अनेन ममात्मना नरकनिगोदादौ तीनतरा अनन्तवेदना अनन्तवारमनुभूता' इति विभाव्य, अतिवेल-वेलाऽतिक्रमण न गच्छेत् न प्राप्नुयात्-प्रतिलेखनादे यः कालस्तं शीतभयादुल्लन्याऽन्यस्मिन् काले प्रतिलेखनादिक न कुर्यादित्यर्थः । यद्वा-शीतभयात् पूर्वोपविष्टस्थान विहाय स्थानान्तर न बजेदिति ।
'चरत' इत्यनेन कारण विना एकनावस्थान न करणीयमिति सूचितम् ।
‘विरय' इत्यनेन यतनावत्त्व सूचितम् । यसे (जिणसासण सोच्चा-जिनशासन श्रुत्वा ) जिन शासम को-'इस मेरी आत्मा ने नरक निगोद आदि स्थानो में तीव्रतर अनत वेदनाएँ अनन्तवार भोगी हे उस वेदना के सामने यह शीतवेदना क्या अधिक है ?' इस बात को सुनकर-समझकर (अइवेल-अतिवेलम्) समय को उल्लघन करके-प्रतिलेखना आदि के समय को टालन करके (न गच्छे-न गच्छेत् ) प्रतिलेखना आदि का जो समय है उसके सिवाय अन्य समय मे प्रतिलेखनादिक क्रियाओ को न करे। तथा शीत के भय से पूर्वाधिष्ठित स्थान का परित्याग कर दूसरे स्थान मे भी न जावे ।
गाथा मे रहे हए "चरत" इस पदद्वारा सूत्रकार यह प्रदर्शित करते ह कि मुनि को कारणविशेष विना एक जगह स्थिररूप से नही निश्चयथी जिणसासाण सोच्चा-जिनशासन श्रुत्वा न शासनाने या भान्मात्मा નરક નિગદ આદિ સ્થાનમાં તીવ્રતાવાળી અનત વેદનાઓ ઘણી વખત ભેગવી છે તે વેદનાઓ સામે આ રીત વેદના કયા હિસાબમાં છે?” આ વાતને સાભળી सभा अइवेल-अतिवेल समयनु SHEन री प्रतिमना माहिना समयने टानी न गच्छे-न गच्छेत् प्रतिवेपना महिना समय छ तना सीवाय मीan સમયમાં પ્રતિલેખનાદિક ક્રિયાઓને ન કરે તથા કડીના ભયથી પૂર્વાધિષ્ઠિત સ્થાનને ત્યાગ કરીને બીજા સ્થાનમાં ન જાય
गाथाभा २सा “चरत" से पहवा। सूत्रधार से प्रशित छे, મુનિયે કારણે વિશેષ વીના એક જગ્યાએ સ્થિર રૂપથી રોકાવું ન જોઈએ