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________________ २६४ - - - उत्तरायनसूत्रे मनुष्यशरीर, त्यस्मा, शाम्यतामफालारस्थायी जन्मगरणरहितः मिदो भवति । वा अथवा, सापशेपकर्मा तु अल्परजाः नल्पकर्मा महर्दिका-महती-दिव्या ऋद्धिविमानादिसम्पत्, उपळदाणेन दिव्यानि द्युतियशोवर्णवलगीर्यादीनि च यस्य स महर्दिकः, तर युतिः-शरीराभरण कान्तिः, यश-कीतिः, वर्ण:-Pादिः, बल- - शारीरिकपराक्रमः, वीर्यम्-आत्मालम्, नादिपटेन-उतोऽन्यदपि समाद्यम्, पमि सपन्नः, देवो भवति। कपूइय देह चइत्तु-मलपातिक देर त्यस्ता) शुक्रशोणित से जन्य इस औदारिक शरीर का परित्याग कर (सास सिद्व हवा-शावता सिद्वा वा भवति) अनत काल तक सदा सिद्धि स्थान में रहने वाला सिद्ध परमात्मा हो जाता है। (वा) अपना यदि वह सिद्ध नहीं बनता (अप्परण्महिड्ढिए देवे वा हवड-अरपरजाः महर्द्विका देवो वा भवति) अल्पकर्मा महद्धिक देव हो जाता है। भावार्थ- पूर्वोक्तलक्षणविशिष्ट विनीत शिष्य देवादिक द्वारा पूज्य होता है, एब इस अपवित्र औदारिक शरीर का परित्याग कर सिद्ध हो जाता है। यदि कर्म शेप रह जाय तो वह महामद्धिशाली देव होता है। यहा ऋद्धिसे द्युति, यश, वर्ण, बल, वीर्य इन सबका ग्रहण हुवा है। विमान आदि सपत्ति का नाम ऋद्धि है। शरीर एव आभरण की कान्ति का नाम द्युति है। कीर्ति का नाम यश है। शरीर का जो शुक्ल आदि वर्ण है - उसका नाम वर्ण है। शारीरिक पराक्रम का नाम चल एव आत्मजन्य शक्ति का नाम वीये है। शुशाशित भन्य मा मोहरि शरीरमा परित्याग ३ सासए सिद्ध हवइशाश्वत सिद्धो भरति मनन्त सुधी सहा सिद्धि स्थानमा २डवावाणासा પરમાત્મા બની જાય છે જા અથવા જે તે સિદ્ધ ન બને તે, અલ્પકમાં મર્ડ દ્ધિક દેવ બની જાય છે ભાવાર્થ–પૂર્વોક્ત લક્ષણવિશિષ્ટ વિનીત શિષ્ય દેવાદિક દ્વારા પૂજ્ય બને છે અને આ અપવિત્ર ઓદારિક શરીરને પરિત્યાગ કરી કા તો સિદ્ધ બના જાય છે જે કર્મ શેષ રહી જાય તે તે મહાદ્ધિ શાળી દેવ બને છે ઋદ્ધિથી ઘુતિ, યશ, વર્ણ, બળ, વીર્ય, આ બધાનું ગાથામાં ગ્રહણ કરેલ છે, વિમાન આદિ સંપત્તિનું નામ ઋદ્ધિ છે શરીર અને આભરણની કાન્તિનું નામ ઘતિ છે, કીર્તિનું નામ યશ છે શરીરને જે શકલ આદિ વર્ણ છે-દ્રવ્ય વૈશ્યા છે-એનું નામ વર્ણ છે શારીરિક પ્રરાક્રમનું નામ બળ છે
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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