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________________ २५६ छाया -- मनोगत वाक्यगत, त्या आर्चायस्य तु । तत् परिगृह वाचा, कर्मणा उपपादयेत् ||४३|| टीका--' मणोगय ' इत्यादि - उत्तराध्ययन सूत्रे आचार्यस्य मनोगत = मनसि वर्तमान, तथा आयगत = वचसि स्थित तु शब्दात् कायगतमपि कार्यं पूर्वं ज्ञात्वा पचात् तत्कार्य वाचा परिगृ=अङ्गीकृत्य, 'अहमेतत् कार्यं करोमि ' इत्युक्तया शिष्यः कर्मणा = कायिया क्रियया, उपपादयेत् = सपन्न कुर्यात् । यत् कार्य गुरोर्मनसि विद्यमान, 'कार्यमिद कियताम्' इत्यादिना वचसा वाऽभिहित, गुरुणा क्रियमाण वा यत् कार्यं तद् गुरुदस्तादुपादाय त्वरितमेव सुशिष्येण सपादनीयमिति भावः ॥ ४३ ॥ 'मणोगय' इत्यादि. अन्वयार्थ - (आयरियस्स मणोगय वकराय - आचार्यस्य मनोगत वाक्यगत) आचार्य महाराज के मनोगत एव वाक्यगत “ तु" शब्द से कायगत कार्य को (जाणित्ता - ज्ञात्वा) पहिले जानकर पश्चात् (त- तत् ) उस कार्य को (वाया - वाचा) बागी से (परिगिज्झ - परिगृह्य) अगीकार कर के शिष्य (कम्मुणा - कर्मणा) कायसवधी किया द्वारा ( उचवायएउपपादयेत् ) उस कार्य को कर देवे। जो कार्य गुरु के मन मे स्थित हो - गुरु ने जिस कार्य को करने का विचार किया हो ' इद कार्यम् क्रियताम् ' यह काम करो' इस प्रकार जिस कार्य को करने के लिये उन्होंने कहा हो, अथवा गुरु महाराज जिस कार्य को स्वयं अपने हाथ से कर रहे हों तो विनय शिष्य का कर्तव्य है कि वह उस कार्य को शीघ्र ही स्वय संपादित करे । और गुरु महाराज करते हो तो उनके हाथ से लेकर स्वय करने लग जाय ॥ ४३ ॥ मणोगय-त्याहि - अन्वयार्थ – आयरियस्स मनोगय वक्कगय - आचार्यस्य मनोगत वाक्यगत આચાર્ય મહારાજના મનેાગત્ અને વાકયગત “તુ શબ્દથી કાયગત કાર્યને जाणित्ता - ज्ञात्वा पडेसा भागीने यछीथी त तत् ते जयने वायाए - वाचा वालीथी परिसिज्ज -परिग्रहय अगिअर उरीने शिष्य कमुणा - कर्मणा प्राय समधी डिया द्वारा उववाय - उपपादयेत् मे अर्थ हुरी हे ने अर्थ गुरुना मनभा સ્થિત હાય, ગુરુએ જે કાય કરવાના વિચાર કર્યાં હાય, “ આ કામ કરા’ આ પ્રકાર જે કાને કરવા માટે પોતે પોતાના હાથથી કરી રહ્યા હોય તા વિનયી શિષ્યનું કવ્ય છે કે એ તે કાર્યને તુરત જ પાતે ઉપાડી લે અને ગુરુ મહારાજ કરતા હોય તે તેમના હાથમાથી લઈ ને પાતે કરવા લગી જાય ॥ ૪૩ ||
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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