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________________ ૨૮ उक्त च-- अलाभो तिन सोइज्जा, तनोति अहियासए । छाया - अलाभ इति न शोचेत्, तप इत्यध्यासीत ॥ उत्तराभ्ययनसूत्रे --- च - पुनः अकाल-प्रतिक्रमण - मतिलेखनाऽऽपृच्छना-सा याय भिक्षाचरीप्रभृतिकार्याणामयोग्य समय च निवर्ज्य = परित्यज्य, काले-यस्य कार्यस्य यः कालस्तस्मिन्नेव, काल तत्तत्कालोचित प्रतिक्रमण-प्रतिलेखनादिक कार्य समाचरेत् कुर्यात् । अय भावः – यो यस्य अङ्गमविष्टादेः श्रुतस्य काल उक्तस्वस्य श्रुवस्य तस्मि न्नेव काले स्वाध्यायः कार्यः, नान्यदा, निम्नसमनात्, तीर्थंकराज्ञाविरोधाच्च । अलाभ हो तो वही लाभ की आशा से समय को उल्लघन कर बहुत समय तक घूमता ही रहे। भगवान ने कहा भी है"अलाभो त्ति न सोइज्जा, तयोत्ति अहिया स" साधु को जब अपने समयानुसार भिक्षा का लाभ न हो तो उस समय उसे शोच नहीं करना चाहिये किन्तु ऐसा समझना चाहिये कि यह एक बडे भारी तप का लाभ हुआ है। प्रतिक्रमण, प्रतिलेखना, अपृच्छना, स्वाध्याय तथा भिक्षाचर्या का जो समय नियत है उस समय के अतिरिक्त (अकाल च विवज्जित्ता - अकाल च विवर्ज्य ) शेष उनका अकाल का समय है अतः उसे छोडकर (काल) जोर, कार्य जिसर समय मे किये जाने चाहिये उन्हें (काले) उसी समय में (समायरे - समाचरेत् ) करे । भावार्थ -- जिस अगप्रविष्ठ आचारांग आदि सूत्रों के स्वाध्याय करने का जो समय नियत है उस समय मे उसी श्रुत की स्वाध्याय આશાથી સમયનુ ઉલ ઘન કરીને ઘણા સમય સુધી ક્રુરતા રહે ભગવાને કહ્યુ છે કે अलाभोत्ति न सोइज्जा तवो त्ति अहियासए साधुने न्यारे घोताना समय अनुसार ભિક્ષાના લાભ ન થાય તેા તે સમયે તેણે સાચ ન કરવા જોઈ એ પરતુ शुभ समभवु लेध से है, या शेड लारे तपनो साल भन्यो, प्रतिक्रमण, प्रतिलेखना आरपृच्छना स्वाध्याय तथा लिक्षाययोनी ने सभय नियत छे से समय सिवाय, अकाल च विवज्जिता - अकाल च विवर्ज्य शेष तेनो भजनो सभय छे, माथी मेने छोडी, काल ? के आर्य ने ने समयमा श्री देव लेहाथो मेने मे काले समयमा समायरे - समाचरेत् भावार्थ- અગ પ્રવિષ્ટ આચારાગ આદિ સૂત્રોને સ્વાધ્યાય કરવાના જે સમય નિયત છે એ સમયમા એજ શ્રુતનેા સ્વાધ્યાય કરવા જોઈએ શ્રીન
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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