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इत्यादि । मानाभि धम्मो मुगलमुष्टिापा कमपि चरण पर
नयपदेशप्रयदर्शिनी टीका अ० १ गा २३ सूनोचारणदोपा'
द्रव्यभावतो व्यत्यानेडित सूत्रे कुर्वतोऽर्थस्य विसवादः इत्यादि विवक्षा प्रागिव, यया दीक्षा निरधिका ।
७अपरिपूर्ण-मात्राभिः, पदै धरणे विन्दुभि वर्णश्च । मात्राभिरपरिपूर्ण 'धम्म मगलमुक्टि' । पदैरपरिपूर्ण-यथा-" धम्म उक्टि"। चरणैरपरिपूर्ण-यथा'धम्मो मगलमुक्ट्ठि' इत्यादि गाथाया कमपि चरण परित्यज्य पठनम् । विन्दुभिरपरिपूर्ण-यथा 'धम्मो मगलमुक्टि" इति । वर्णरपरिपूर्ण यथा-'धम्मोल उकिह' इत्यादि । मानाभिः पदैश्चरणैबिन्दुभिर्वर्णरपरिपूर्णे उच्चारित तदेव प्रायश्चित्त त एव दोपाश्च भवन्ति । में व्यत्यानेडित कर देता है तब उसके अर्थ मे स्वभावतः विसवाद होने लगता है और इससे जो हानि होती है यह अधिकाक्षर तथा हीनाक्षर के दोप के स्वरूपनिरूपण मे पता चुके हैं।॥६॥अपरिपूर्ण-जहां मात्राओ से, पदों से, चरणो से, बिन्दुओ से, वर्णो से अपरिपूर्णता होती है वहां अपरिपूर्ण दोप माना जाता है, जैसे “धम्मो मगलमुकिट्ठ " की जगह "धम्ममगल किट्ठ" इस प्रकार "ओकार " की मात्रा हीन कर पढना । "धम्म उकिट" ऐसा मगलपद हीन कर पढना । किसी चरण कोपाद को-हीन कर पढना, किसी विन्दु को हीन कर पढना, किसी वर्ण को हीन कर पढना सो क्रमशः मात्रा आदिको से अपरिपूर्ण दोप माना गया है। इस प्रकार के उच्चारण करने पर एक तो आगम की आशातना होने से प्रायश्चित का भागी होना पडता है दूसरे विसवादादि अनेक अनर्थ उत्पन्न हो जाते हैं। इससे जीव को मुक्ति का लाभ नही हो सकता है। तथा दीक्षा में निरर्थकता की प्रसक्ति का प्रसग प्राप्त होता है ॥ ७॥ વિવાદ થવા લાગે છે અને એથી જે હાની થાય છે તે અધિકાક્ષર તથા હિનાક્ષરના દેવના નિરૂપણમાં બતાવવામાં આવેલ છે
(6) अपरिपूण भात्रामाथी पहोथी, यशथी, मिन्याथी, વણેથી, અપરિપૂર્ણતા હોય છે ત્યા “અપરિપૂર્ણ” દોષ માનવામાં આવે છે "धम्मो मगल मुक्किट्ठ" नी व्याये चम्ममगलमुक्किट्ठ मा शत, ओकारनी मात्रा हीन री पायवु, “ धम्म उचिट्ठ "मेम भगत यह हीन 3री वाय, કઈ વર્ણને હીન કરી વાચવુ તે મ માત્રા આદિથી અપરિપૂર્ણ દોષ માનવામાં આવેલ છેઆ પ્રકારનું ઉચ્ચારણ કરવાથી એક તો આગમની આશાતના થવાથી પ્રાયશ્ચિત્તના ભાગી થવું પડે છે બીજુ વિસ વાદાદિ ઘણુ અનર્થ ઉત્પન્ન થાય છે, આથી જીવને મુક્તિને લાભ મળી શકતો નથી આથી દીક્ષામાં નિરર્થકતાની પ્રક્તિને પ્રસ ગ પ્રાપ્ત થાય છે