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________________ - - निरपालिका मर्गः, रम्पर्यः, 'मामादाय' इत्यादिपदानां व्याख्या पूर्वोक्तरीत्यागन्तम्या। परम्भूतः पृणिवीपिटापट्रक आमीत् ।। २ ।। मूलम्-तेणं कालेणं तेणं समपणं समणस्स भगवओ महावीरस्त अंतेवासी अजसुहम्मे णामं अणगारे जाइसंपन्ने नहा केसी जाव पंचहि अणगारसएहिं सद्धिं संपरिबुडे पुवा पुचि चरमाणे (गामाणुगाम दुइजमाणे) जेणेव रायगिहे जार अहापडिरुवं ओग्गहं ओगिणिहत्ता संजमेण जाव विहरइ । परिसा णिग्गया धम्मो कहिओ । परिसा पडिगया ॥३॥ छाया-नम्मिन काले नम्मिन् समये श्रमणप्य भगवतो महावीरस्यालेगमी भार्यमुधर्मा नामाऽनगारी जातिसम्पनी यथा केशी, यावत् पत्रभिरनगारमने: माई संपरिएनः पूर्वानृा चरन् (ग्रामानुग्राम द्रवन् ) यव राजगुर नगरं यापर यथामतिरूपमवग्रहमपगृह्य संयमेन यावद् विहरति । परिपदिना । धर्मः यिनः । परिपत प्रतिगता ॥३॥ टीका-नणं पाटणं' इत्यादि-तम्मिन् काले तस्मिन समये श्रमणम्य भागो महागीरम्प अन्तवामीभिप्या, आर्यमुधर्मा (म्बामी) नामाऽनगारः शिवानीपतयः । भय नर्गनमाह-जातिमम्पन्नःविशुद्धमागयुक्तः, 'ययाइसी नि-गिनामा श्रमणो गणधगं यथाऽऽमीदिन्यर्थः, अत्र यावच्छकदैन मानिमिानि गंगृान्ने-नयाहि-'कुलगंपन्ने, बलगंपन्न. विणयसंपन्ने, माधव समान पनवाला, उचित प्रमाण मे लम्या चौटा आमन के आकारमा पनामा प्रश्वाशिलापटगा, जो दगंनीय अभिम्प प्रतिरूप धा ॥२॥ तणं कारण त्यादि । उस काल उम समय में श्रमण भगवान महावीर म्यामी, अन्तवामी (शिष्य) श्री आर्यसुधर्मास्वामी बिगते थे। उनका गर्णन केसी ब्रमण के समान इस प्रकार है मानाका हा विशुद्ध सोने से जातिसंपन्न थे। पटक पक्ष निर्मल :... .:; ny writ ing वाशिम का 1 पार ३५.भी. पान . नगर्नु १ भी - ११९१ : 7. Kyari५५ १८ २०११
SR No.009351
Book TitleNirayavalikasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages437
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size22 MB
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