________________
मुन्दरबोधिनी टीका वर्ग ३ अ. ५ पूर्णभद्रदेववर्णनम्
३१५ मरणभयविप्पमुक्का बहुस्सुया बहुपरिवारा पुवाणुपुद्धिं जाव समोसढा, परिसा निग्गया। तएणं से पुण्णभद्दे गाहावइ इमीसे कहाए लद्धडे समाणे हटु० जाव पण्णत्तीए गंगदत्ते तहेव निग्गच्छइ जाव निक्खतो जाव गुत्तबंभयारी । तएणं से पुण्णभद्दे अणगारे भगवंताणं अंतिए सामाइयमादियाई एकारस अंगाई अहिजइ, अहिज्जिता बहुहि चउत्थछठम जाव भाविता बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए सलेहणाए सर्द्धि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता आलोइयपडिक्कंते समाहिपने कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे पुण्णभद्दे विमाणे उववायसभाए देवसयणिजसि जाव भाषामणपज्जत्तीए । एवं खल्लु गोयमा ! पुण्णभद्देणं देवेणं सा दिवा देविडी जाव अभिसमण्णागया। पुण्णभदस्त णं भंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! दोसागरावमा ठिई पण्णत्ता । पुण्णभद्दे णं भंते ! देवे ताओ देवलोगाऔ जाव कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उबवजिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव अंत काहिइ ? एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं निक्खेवओ।१।
॥ पंचमं अज्झयणं समत्तं ॥ ५ ॥ छाया-यदि खलु भदन्त ! श्रमणेन भगवता उत्क्षेपकः। एवं खलु जम्बू : ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये राजगृहं नगरं गुणशिलं नाम चैत्यम् , श्रेणिको -राजा, स्वामी समवस्तः, परिपद् निर्गता । तस्मिन् काले २ पूर्ण