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निरयावलका
मूलम् -- तत्थ णं चंपाए नयरोंए सेणियस्स रन्नो पुत्ते चणाए देवीए अत्तए कणियस्त रन्नो सहोयरे कणीयसे भाया वेहले नामं कुमारे होत्था सोमाले जाव सुरूवे । तपणं तस्स वेहलरस कुमारस्स सेणिएणं रन्ना जीवंतपणं चेव सेयणए गंधहत्थी अहारसय हारे पुत्रदिने ।
तणं से वेहल्ले कुमारे सेणऐणं गंधहत्थिणा अंते उरपरिबालसंपरिवुडे चंपं नगरिं सज्झमज्झेणं निग्गच्छइ निग्गच्छित्ता अभिक्खणं २ गंगं महानई मज्जणयं ओयरइ ।
तणं सेयणए गंधहत्था देवीओ सोंडाए गिues, गिहि ता अप्पेगइयाओ पुढे ठवेइ, अम्पेगइयाओ खंधे ठवेइ, एवं अप्पेगइयाओ कुंभे ठवेइ, अम्पेगइयाओ सीसे ठवेइ, अप्पे गइयाओ दंतमुसले ठवेइ, अप्पेगइयाओ सोंडाए हाय उ वेहासं उहि अप्पेगइयाओ सोंडागयाओ अंदोलावेड़, अप्पेगइयाओ दंतंतरेसु नीणेइ, अप्पेगइयाओ सीभरेणं पहाणेइ, अप्पेगइयाओ अणेगेहिं कीलावणेहि कीलावेड़ |
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१.३६
तणं चंपा नयरीए सिंघाडगतिगच उकघश्चर महापहप हेसु बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परुवेइ - एवं खलु जाय किन्तु वह धन नहीं देसकता, वैसेही कुत्सित गुरुकी सेवामें न श्रुतचारित्रलक्षण धर्मकी प्राप्ति होती है और न मोक्षकी प्राप्ति हो सकती है।
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कृणिक श्रेणिकका घातक क्यों हुआ ?' उसका विवरण उपरोक्त लिखे अनुसार है || सू० ३९ ॥ એવીજ રી કુત્સિત ( અયાગ્ન ) ગુરૂની પ્રાપ્તિ થાતી કે નથી મેક્ષની પ્રાપ્તિ થઈ શકતી. 'थि, मध्धात हे थया ? तनु विवर
સેાથી નથી તે શ્રુતચાારત્રલક્ષણ ધર્મની
२४ प्रभा छे. (सू०३८)