SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - स्थविरावली छायाततश्च भूतदिन्नं, नित्यं तपःसंयमेऽनिर्विण्णम् । पण्डितजनसंमान्यं, वन्दामहे संयमविधिज्ञम् ॥ ४२ ॥ अर्थःउसके बाद हम तपस्या और संयममें सदा ग्लानिरहित तथा पण्डितजनों के खूब माननीय और संयमविधिके जाननेवाले श्रीभूतदिन्ननामक आचार्य को वन्दन करते हैं ॥ ४२ ॥ मूलम् वरकणगतवियचंपग-विमउलवरकमलगम्भसरिवन्ने। भविजणहिययदइए, दयागुणविसारए धीरे॥ ४३ ॥ अड्ढभरहप्पहाणे, बहुविहसज्झायसुमुणियपहाणे। अणुओगियवरवसभे, नाइलकुलवंसनंदिकरे॥४४॥ भूयहियप्पगन्भे, वंदेहं भूयदिन्नमायरिए। ११ १३ १२ भवभयवुच्छेयकरे, सीसे नागाज्जुणरिसीणं॥४५॥ (विसेसयं) छाया वरतप्तकनकचम्पक-विमुकुलवरकमलगर्भसदृग्वर्णान् । भविकजनहृदयदयितान् , दयागुणविशारदान धीरान् ॥ ४३ ॥ अर्द्धभरतप्रधानान् सुविज्ञातवहुविधस्वाध्यायप्रधानान् । अनुयोजितवरकृषभान् , 'नागिल' कुलवंशनन्दिकरान् ॥४४॥ भूतहितप्रगल्भान् , वन्देऽहं भूतदिन्नाचार्यान् । भवभयव्युच्छेदकरान् , शिष्यान् नागार्जुनर्षीणाम् ॥४५॥ (विशेषकम् )
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy