________________
७४६
-
वदति - परतीरतो मधुच्छनं स्पष्टं दृश्यते, गच्छ तत्र गत्वा पश्यामि । धीवरोऽपि तया सह परतीरं गतः । तत्र सा प्रतिषिद्धगृहस्य समीप एव स्थित्वा मधुच्छत्रं प्रदर्शितवती । धीवरेण ज्ञातम्-इयमन प्रतिषिद्धे गृहे याति समायाति च । इति धीवरस्यौत्पत्तिकी बुद्धिः।
इत्यष्टादशो मधुसिक्थदृष्टान्तः॥ १८ ॥ अथैकोनविंशतितमो मुद्रिकादृष्टान्तः
एकस्मिन्नगरे सत्यवादिनामकः पुरोहितो वर्तते । लोकस्यैवं विश्वासो जात:अयं समयातिक्रमेऽपि केनचिद्धृतं निक्षेपं ददाति । एवं जातविश्वासः कश्चिद् द्रमक (दरिद्रः )-स्तस्यान्तिके स्वनिक्षेपं निधाय देशान्तरं गतः। नहीं पड़ता है, परन्तु उस तट से देखने से यह स्पष्ट दिखलाई देता है, इस लिये चलो वहां से दिखलाऊँ। पत्नी की ऐसी बात सुनकर वह उस तीर पर उसके साथ चला गया। जिस घर में उस स्त्री का आना जाना निषिद्ध कर रखा था वह उसी घर के पास खडी होकर अपने पति को मधुच्छन दिखाने लगी तो पतिने अपनी बुद्धि से जान लिया कि यह मेरे निषेध किये हुए घर में प्रतिदिन आती जाती है ॥१८॥ ॥ यह अठारहवां मधुसिक्थ (मधुच्छन्त्र) दृष्टान्त हुवा ॥१८॥
उन्नीसवां मुद्रिकादृष्टान्तएक नगर में कोई सत्यवादी नाम का पुरोहित रहता था। उसके ऊपर लोगों का ऐसा विश्वास जमा हुआ था कि यह अवधि निकल जाने पर भी कभी भी किसी की धरोहर कोहडप कर अपना नहीं करता है-वापिस लौटा देता है। एक समय किसी दरिद्र ने उसके पास अपनी कुछ धरोहर रखकर देशान्तर गया। ઉભી રહીને તે તેના પતિને મધપૂડો બતાવવા લાગી ત્યારે પતિએ પિતાની બુદ્ધિથી સમજી લીધું કે આ મેં જ્યાં જવાની મનાઈ કરી છે તે ઘેર દરરોજ આવે જાય છે. એ ૧૮ છે * આ અગીયારમું મધપૂડાનું દષ્ટાંત સમાસ ૧૮
मागणीसभु मुद्रिका दृष्टांतએક નગરમાં સત્યવાદી નામને કેઈએક પુરોહિત રહેતો હતો. તેના ઉપર લોકોને એવો વિશ્વાસ બેસી ગયે હતું કે મુદત પ્રસાર થઈ જવા છતા પણું તે કેઈની અનામત (થાપણુ) પચાવી પાડતું નથી. એક વખત કેઈ દરિદ્ર માણસ તેની પાસે પોતાની અમુક થાપણ મૂકીને પરદેશ ગયે.