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नदीसत्रे
अथ पञ्चमागस्वरूपमाह -
मूलम् - से किं तं विवाहे ? विवाहे णं जीवा वियाहिज्जंति, अजीवा वियाहिन्जंति, जीवाजीवा वियाहिज्जति, ससमए विया हिज्जइ, परसमए वियाहिज्जइ, ससमयपरसमए वियाहिज्जइ, लोए वियाहिज्जइ, अलोए वियाहिज्जइ, लोयालोए वियाहिज्जइ । विवाहस्स णं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखिज्जा वेढा, संखिज्जा सिलोगा, संखिज्जाओ निज्जुतीओ, संखिज्जाओ संगहणीओ, संखिज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगट्टयाए पंचमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, एगे साइरेगे अज्झयणसए, दस उद्देसगसहस्साई दस समुद्देसग सहस्साई, छत्तीसं वागरणसहस्साइं दो लक्खा अट्ठासीइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखिज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासयकडनिबद्धणिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जति । से एवं आया, एवं णाया, एवं विष्णाया । एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ ६ । से तं विवाहे ॥ सू०४९ ॥ ग्रथित होने से निबद्ध हैं, निर्युक्ति हेतु उदाहरण आदि से प्रतिष्ठित होने से निकाचित हैं, ये सब यहाँ सामान्यरूप से कहे गये हैं । इन समस्त पदों का अर्थ आचारांग के वर्णन में वर्णित हो चुका है। इस तरह इस सूत्र में चरण करण की प्ररूपणा हुई है । यह समवायाङ्ग का वर्णन हुआ ॥ सू० ४८ ॥
अब पांचवें अंग व्याख्याप्रज्ञप्ति का वर्णन किया जाता हैકૃત-અશાશ્વત છે, સૂત્રમાં ગ્રથિત હાવાથી નિષદ્ધ છે, નિયુક્તિ હેતુ ઉદાહરણ આદિથી પ્રતિષ્ઠિત હાવાથી નિકાચિત છે, આ બધા અહીં સામાન્યરૂપે કહેવાયેલ છે. એ બધાં પદોના અર્થ આચારાંગના વર્ણનમાં વિણત થઇ ગયા છે. આ રીતે આ સૂત્રમાં ચરણકરણની પ્રરૂપણા થઇ છે. આ સમવાયાંગ સૂત્રનુ વર્ણન થયુ' uસૂ. ૪૮૫ ह्नवे पांयभां भौंग व्यास्याप्रज्ञप्ति तु वर्णन उरवामां आवे छे