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ज्ञानन्द्रिका टीका-सूत्रकृताङ्गस्वरूपवर्णनम्.
" अल्पाक्षरमसन्दिग्ध, सार वद् विश्वतो मुखम् ।
अस्तोभमनवा च, सूत्रं सूत्रविदो विदुः " ॥ इति । कल्याणकी सिद्धि कर लेता है । " सूत्रमिव सूत्रम् ” जिस प्रकार तन्तु के द्वारा दो, तीन अथवा अधिक भी वस्तुएँ एक जगह बांध दी जाती हैं उसी प्रकार एक ही सूत्रद्वारा बहुतसे अर्थ भी बांधे जाते हैं इस लिये सूत्रकी तरह यह सूत्र कहा गया है । अथवा सूत्रका यह भीलक्षण कहा गया है
“अल्पाक्षर मसंदिग्धं, सारवत् विश्वतोमुखम् ।
अस्तोभमनवयं च, सूत्रं सूत्रविदो विदुः" ॥१॥ अल्पाक्षर-जिसमें अक्षर अल्प हों, तथा-असन्दिग्ध-सन्देहरहित, अर्थात् जो सन्देह को उत्पन्न करने वाले अनेकार्थक शब्दोंले रहित हो, सारवत्-सारयुक्त, अर्थात् अनेक पर्यायों से युक्त हो अथवा बहुत अर्थको कहने वाला हो, विश्वतोमुख-अर्थात् चारों अनुयोगो से युक्त हो अस्तोभ-अर्थात्-'वा, वै, हि' आदि स्तोभों-निरर्थक निपातों से रहित हों, अनवद्य-गहीं रहित अर्थात् हिंसा का प्रतिपादक न हो, इस प्रकार के लक्षणों से युक्त को ही सूत्र के जानने वालों ने सूत्र कहा है ॥१॥ निःश्रेयस-मात्म४याशुनी सिद्धि ४ से छे. “ सूत्रमिव सूत्रम् ” रम सूत्र (દેરી) દ્વારા બે, ત્રણ અથવા વધારે વસ્તુઓ પણ એક જગ્યાએ બાંધી દેવાય છે તેમ એક જ સૂત્ર દ્વારા બહુ જ અર્થો પણ બાંધી શકાય છે, તે કારણે આ સૂત્રને સૂત્ર (રા) જેવું કહેલ છે. અથવા સૂત્રનું આ પણ લક્ષણ કહેલ છે
"अल्पाक्षर मसंदिग्धं, सारवत् विश्वतोमुखम् ।
___ अस्तोम मनवयंच, सूत्रं सूत्रविदो विदुः" ॥१॥ - अल्पाक्षर-रेमा था! यक्ष२ डाय, तथा असंदिग्ध-सड २डित थेट २ सह अत्यन्न ४२ना२। २पने Avatथी. २डित हाय, सारवत्-सा२युत मेरो मने पायाथी युत अथवा ! अर्थ ने ना२ छाय, विश्वतोमुखमेटो यारे मनुयोगीवाणु काय, अस्तोभ-मेटले “वा, वै, हि माहि स्तोता-मा निपाता विनानु डाय, अनवंद्य-रहित मेटल डिसानु પ્રતિપાદક ન હોય, આ પ્રકારનાં લક્ષણવાળાને જ સૂત્રના જાણકારોએ સૂત્ર इस छे. ॥१॥