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________________ ५६३ मानचन्द्रिका टीका-आचारांङ्गस्वरूपवर्णनम्. तम् २, अथवा श्रुतं मया आयुष्मता ३, अथवा श्रुतं मया भगवत्पादारविन्दयुगलमामुशता ४, अथवा श्रुतं मया गुरुकुलमावसता ५, अथवा श्रुतं मया हे आयुज्यमन् ! ' तेण' तत् , प्रथमार्थ तृतीया, भगवता एवमाख्यातम् ६, अथवा-श्रुतं मया हे आयुष्मन् ! 'तेणं' तदा भगवता एवमाख्यातम् ७, अथवा-श्रुतं मया बोधक हो जाता है २ । तीसरा अर्थबोध इस प्रकार से है " श्रुतं मया आयुष्मता" मुझ आयुष्मान् द्वारा सुना गया है" इस कथनमें यह "आयुष्मता" विशेषण सुधर्मास्वामी के साथ प्रयुक्त होता हुआ प्रतीत होता है ३।" श्रुतं मया आमृशता" यहां “आउसंतेणं" की छाया "आमृशता” हुई है, इसलिये चतुर्थ अर्थ ऐसा होता है कि "भगवान् के पादारविन्दयुगल को स्पर्श करने वाले मैंने सुना है" ४ । अथवा-"आउसंतेणं" की छाया 'आवसता' भी होती है जिसका अर्थ होता है कि "गुरुकुलमें निवास करते हुए मैंने सुना है" ५। "तेणं" यह पद जब प्रथमा के अर्थमें तृतीयारूप से प्रयुक्त हुआ माना जावेगा तब "तेणं" की छाया "तत्" होगी, तब ऐसा अर्थ बोध होगा कि-"श्रुतं मया आयुष्मन् । तत् भगवता एवमाख्यातम्" हे आयुष्मन् ! मैं ने सुना है जिन जीवादिवस्तुओं को भगवान् ने इस प्रकार से प्रतिपादित किया है ६। अथवा"तेणं" यह पद "तदा" के रूपमें प्रयुक्त हुआ जब माना जावेगा तब "श्रुतं मया आयुष्मन् तदा भगवता एवमाख्यातम्" ऐसा अर्थ बोध होगा" अर्थात्-हे आयुष्मन् ! जंबू ! मैं ने तब सुना था जब भगवान्ने ऐसा પદ ભગવાન મહાવીર સ્વામીનું બાધક બની જાય છે (૨) ત્રીજો અર્થ છે આ प्रमाणे छ-"श्रुतं मया आयुष्मता" " मायुष्मान मेवा भा२। द्वारा सलवायु छ' २मा थनमा मा “आयुष्मता" विशेष सुधास्वाभानी साथे परायु हाय तभ मागे छ (3) श्रुतं मया आमृशता" मही “आउसंतेणं" नी छाय। "आमृशता" छ, तथा याथ। म सेवा थाय छे “लगवान ना पाहा२. वियुगतना स्पश ४२नार में सामन्यु छ." (४) अथवा “ आउसंतेणं" नी छाया “ आवसता" ५] थाय छे रन । अर्थ थाय छ , “ गुरुसमा निवास ४२ता सेवा में सामन्यु छ" (५). " तेणं" मा ५४ प्रथमाना मर्थभां तृतीया३२ १५शयेस मानवामा माने तो " तेणं"नी छाय। “ तत् " थशे, त्यारे २॥ प्रभारी मन मा 3-" श्रुतं मया आयुष्मन् ! तत् भगवता एवमाख्यातम्" मायभान ! २ वास्तुमान लगवान मा सारे प्रति. पाहित अरेस छत में सलज्यु तु. (6) मथवा "तेणं" मा ५६ तदा ना ३५ १५राय ने मानी वाय तो " श्रुतं मया आयुष्मन् तदा भगवता अवमा
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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