SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 987
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुदर्शिनी टीका अ० ५ स्०१ परिग्रहविरमणनिरूपणम् ८४३ सः, तथा-'धिडकदो' धृतिकन्दा=वृतिः चित्तम्बार य सैव सन्दो मूलाधोभाग स्पो यस्य स', तथा-रिणयवेडो' विनयवेदिका विनय एव वेदिकान्वेदिर्यस्य स , तथा-'निग्गयतेलोकपिपुलजसनिचियपीगपीचरसुजायसधी' निर्गतत्रैलोक्यविपुलयशोनिचितपीनपीपरसृजातजन्याना निर्गत व्याप्त त्रैलोक्ये यत्तनिर्गतनैलोक्य लोक्त्रयव्याप्तमित्यर्थः, एतादृश यद् विपुल-विशाल गश. स्यातिस्तदेव निचितोनिविड पीनो महान् पीवर =पुष्टः सुजात.-सुनिष्पन्नः स्कन्धो यस्य सः, तथा-पचमहव्ययविसालसालो' पञ्चमदानतपिगालगाल:=पञ्चमहातान्येव विशाल विस्तृताः गालाम्गाग्वा यस्य सः, तथा-'भाषणातयतझाणसुभगजोगनाणपल्लवपरकुरबरो' भावनालगन्त यानसुभगयोगशानपल्लबवराडरघर , तन-भावनेर अनित्यत्वादिचिन्ननलक्षणैन गन्तलापोऽयो यस्य स , भावनारूपत्वचासपन्नइत्यर्थ , तथा- यानम् धर्म यानादि, शुभयोगा'शुभमनोवावायव्यापाराः, ज्ञानबोध्य तान्येव पल्लवावरादुराश्च तेपा धरो यः सः, अनयो कर्मवारय , तथा-' बहुगुणकुसुमसमिद्धो' बहुगुणकुसुमसमृद्धः बहवो ये विशुद्ध मूल सम्यग्दर्शन है । (धिइकदो) चित्तस्वास्थ्यरूप धैर्व ही इस का कद है, (विणयवेइओ) विनय ही इसकी वेदिका-उत्पत्ति भूमि है। (निग्गय-तेलोविउलजसनिचियपीणपीवरसुजायखधो) त्रैलोक्य में व्याप्त यश ही इसका निविड, पीन-घडा-पोवर-पुष्ट और सुजातसुहावना-स्कध है । (पचमचयविसालसालो)पांच महाव्रत ही इसकी विशाल शाखाएं हैं। (भावणातयतज्झाणसुभगजोंगनाणपल्लववरकुरधरो) अनित्य आदि भावनाएँ हो इसकी त्वचा-छाल है, धर्म पान आदि व्यान, मन, वचन और काय की शुभ प्रवृत्तिरूप, व्यापार एवं सम्यक्ज्ञान, ये सब ही इसके पत्ते और उत्तम पलवाडर हैं, (बहुगुण कुमुमसमिद्धो (क्षान्त्यादि अनेक गुणोरूपी पुष्प से यह सदा समृद्ध भूण छ “धिइकदो" वित्त पन्यता३५ धैर्यतेनु छ "विणय वेइओ" विनय तनी हि त्पत्तिनी मुभि छ “निग्गयतेल्लोक्कविउलजस निचियपीवरसुजायसयो" सिमा व्यास यश तेनु निqि3, पीन-माटुभाव२-मरभूत अने सुनत-सुह२ २७ छे “ पचमहत्वय विसालसालो " पाय भामत ४ तेनी nि माया छ “भावणातयतज्झाणसुभगजोगनाण पल्लववर कुरघरो" भनित्य मा सावन तेनी छ , यमयान माह ધ્યાન, મન, વચન અને કાયની ગુભ પ્રવૃત્તિરૂપ વ્યાપાર, અને જ્ઞાન, એ ગૌ तेना पत्ता, भने उत्तम पासवारे। छे “बहुगुणकुसुमसमिद्धो" क्षान्त्य
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy