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________________ सुशिनीटीका म०१ सू० ७ स्थलचरचतुष्पदजीवनिरूपणम् शाशकाः मसिद्धाः। 'पसर' मगरा द्विसुरा गन्यपशुनिदोपाः, 'गोणा' गावः 'रोदिय' रोहिता'चतुप्पदपशपिशेषा', 'हयगयग्वर' हया गनाः खराश प्रसिद्धा । करमा'-उप्टा. 'मग' गडगा-परशहा आटव्याश्चतुप्पदविशेषाः 'गंडा' इति लोके ग्याताः पा गमनकाले उभयोरपि पार्ययो पक्षतुल्यानि पर्माणि रम्बते, 'वानर' पानराः अनिद्धाः, गाया: बलकण्टा गो सदृशा 'रोझ' इति प्रसिद्धाः। 'विग' वृरा वापद जन्तुविरोपा'भेडिया' इति प्रसिद्धा', 'सिया' गायः मसिद्रा, 'कोला 'शुराः ' मन्नार ' मार्जाराविड़ाला 'कोळमुणह' कोलशुनमा माटव्यमद्वारा कराः 'सिरिषदल्गापत्त' श्रीकन्दलकाअनेक और श्रृगामी शापा फुटती है। इनके सीगों की जो भस्म बनती है उसे विशाण भस्म करते है। इनके दोसुर होते हैं। और ये जगल मेरी रहते हैं । (उरम्भ)उरभ्र नाम मेंढे का है। (समय) राशक नाम स्वरगोग का है। (पमर) मगर एक जाति का जानवर होता है, इसके दो खुर हुआ करते हैं। यह जगल में ही रहता है। (रोहिय) "रोहित" यह भी चार पैरोंवाला एक जानपर विशेप होता है। (हय ) हय-नाम घोड़े का है, (गय) गय-गज नाम हाथी का है। (ग्वर) सर नाम गधे का है। (करभ) करभ ऊँटका नाम है । (खग) ग्वगीको हिन्दी भाषा में गेंढा कहते है । इसके एक ही सींग होता है, यह जगल में ही रहता है, इस के पैर चार होते हैं, जर यह चलता है तो उस समय इसकी दोनों तरफ पखों जैसा चमड़ा लटकने लगता है। (वानर) वानर नाम यदर का है । (गवय) गवय रोझका नाम है, यह गायके जैसा होता है । और इसका कठ गोल होता है । (विग) वृक यह हिंसक जतु होता है और इसे हिन्दी भाषामें भेड़िया करते है। (सियाल) "श्रृगाल" यह जगली અનેક ઉપાખાઓ ફરે છે તેમના ગીગડાઓની જે ભસ્મ બને છે તેને વિષાણુ ભમ કહે છે તેમને બે ખરી હોય છે, અને તેઓ જગલમા જ રહે છે "उरम" २ नाम घटानु "ससय" श नाम सससानु छ “पसर" પ્રગર એક જાતનુ જાનવર છે, તેને બે ખરી હોય છે અને તે જગલમાં રહે છે "रोहिय" 'डित' ५ मे यो५४ प्राणी छे " हयउय मेटले घोर, "गय" य मेरो साथी, "सर" ५२ मेट गधेडा, "करभ" २स मेटले लट, "सग्ग" भी अटले गे31, तेने मे शीगड डाय छ, ते ४ सभा १ રહે છે, તેને ચાર પગ હોય છે જયારે તે ચાલે છે ત્યારે તેની બંને તરફ पागावी यामडीदारती २९ “वानर" वान२ पीन छ “गवय" ગવય એટલે રેઝ, તે ગાયના જેવું હોય છે અને તેની ડેક ગોળ હોય છે “विग" ४ से ही प्राणी छे तेने २७ ४ामा भाव छ “सियाळ"
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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