SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रदाव्या ম্যাগে अथेदानी 'जहयकओ' यथाकृतः इति तृतीय द्वारमाचपटे 'त च पुणे'त्यादि। मूलम्-त च पुण करेंति केइ पावा असजया अविरवा अणिहुयपरिणामदुप्पांगा पाणवहं भयकर बहुविहं वहुप्पगार परदुक्खुप्पायणपसत्ता इमेहि तसथावरेहि जीवेहि पडिणिविट्ठा कि ते? पाठीण-तिमि-तिमिगिल-अणेगझस-विविहजाइमडुक्क दुविह-कच्छभ-णक-मगरदुविह-गाह-दिलि वेढय-मदुय-सीमागारपुलुय-सुंसुमार बहुप्पगाराजलयरविहाणा कएय एवमाई।सू०६॥ टीकात चमाणिवध 'पुण' पुनः 'के' केऽपि केचिदेवेत्याशयः 'पावा' पापा:=पापप्रकृतयः 'असजया' असयता: असमाहितेन्द्रिया 'अपिरया' अविरता पापकर्मनिरनिरहिता', 'अणियपरिणामदुप्पओगा' अनिभृतपरिणामदुष्प्रयोगा अनिभृतः उपशमवर्जितः परिणाम अभ्यवसायो येपा ते अनिभृतपरिणामाः, दुष्टा प्रयोगा: इन्द्रियनोइन्द्रियव्यापाराः येपाते दुष्प्रयोगाः, अनिभृतपरिणामाच ते दुष्प्रयोगा इति अनिभृत् परिणामदुष्प्रयोगाः, 'परदुक्युप्पायणपसत्ता' परयह उन्तीसवा भेद है २९ और गुणविराधना-श्रतचारित्रगुणों का भङ्ग करना यह तीसवाँ भेद है ३० इस तरह ये प्राणवध के ३० पर्यायवाची शब्द गुणनिष्पन्न प्रकट किये गये है ।।सू०-५|| __ अब सूत्रकार "जह य कओ" इस तृतीय द्वार के विषय में करते हैं-'त च पुण' इत्यादि । टीकार्थ-(केइ पावा) कितनेक पापश्कृलिवाले (असजया) असमाहित इन्द्रियवाले, ( अविरया ) अविरतिसपन्न, ( अणिहुयपरिणामदुप्पओगा) उपशम रहित परिणामो वाले, और इन्द्रिय एव मन के दुष्पव्यापार वाले (परदुक्खुप्पायणपसत्ता) पर प्राणी के लिये दु.खोत्पादन मे परायण કરવા, તે ઓગણત્રીસમે ભેદ છે અને ગુણવિરાધના–મૃતચારિત્ર ગુણને ભગ કરે, તે ત્રીસમે ભેદ છે આ રીતે પ્રાણવધના ૩૦ પર્યાયવાચી શબ્દ તેમના ગુણ સહિત પ્રગટ કરવામાં આવ્યા છે , સૂ ૫ . वे सूत्र॥२ “जह य का" से तृतीय दानु पर्थन ४२ छ-"तच पुण" त्यादि --"के पावा" 32805 पापप्रतिवा"असजया" असमाहित न्द्रियपा, " अविरया " मविरति युत, "अणिहुयपरिणामदुप्पओगा" ५१म शक्षित परिणामावाणा, मन धन्द्रिय मने मनना हुए व्यापारवा "परदुक्खु प्पायणपसत्ता" ५२ प्राणान मारमात्मानमा परायण शवावे. "तच पण"
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy