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________________ ७६० प्रभव्याकरण मणव्रतनियमनम् अदत्तादानविरमणतस्प यनियमन-नियन्त्रण तद् भवति । एवम् अनेन प्रकारेण 'साहारपिंडवायलामममिइजोगेण ' साधारणपिण्डपात लामसमितियोगेन साधारणपिण्डपातलामे या ममितिः सम्यम्पत्तिः नस्या योगेन-सम्मन्धेन भारितोऽन्तरात्मानित्य-सदा अधिकरणारणकारणपापकर्मविरतः =अधिकरणस्य अननुज्ञातभक्तादिभोजनलक्षणमावधमणीयकरण कारणमुपलक्ष णत्वादनुमोदन च तदेव यत्पापकर्म ततो पिरतो-निटत्तः, दत्तानुतातावग्रहरुचि भैति । एतद् व्यारया पूर्वपरिज्ञेया ॥ स ९ ॥ अदत्तादानविरमण व्रत पर नियत्रण-अधिकार हो जाता है। (एव) इस प्रकार से (साहारणपिउवायलाभे) साधारणपिंपातलाभ में (समिइजोगेण) सम्यक प्रवृत्ति के सबंध से (भाविओ अतरप्पा) भावित अन्तरात्मा (निच्च ) नित्य-सदा (अहिकरण करणकारारणपावकम्मविरए) अननुज्ञात भक्तादि भोजनरूप सावधकर्मके करने, कराने और उसकी अनुमोदनारूप पापकर्मसे विरत हो जाती है। और (दत्तम गुण्णाय उग्गहरुई भवद) दत्तानुज्ञात अवग्रह में रुचिशाली रो जाता है । ___भावार्थ-सूत्रकार ने इस सूत्र द्वारा अदत्ताटानविरमण व्रत की चौथी भावना को कहते है। इस का नाम अनुज्ञातभक्तादि भोजन है। साधु के लिये दाना द्वारा कल्पनीय भिक्षा अथवा उपधि की प्राप्ति हो जाने पर उसे किस तरह से अपने उपयोग में लानाचारिये इसका इसमें विचार किया गया है। आहार के विचार में साधु को दाल शाक की अधिकता के साथ में आहार करने का त्याग कहा गया थनय छ "ए" म प्राय " साहारण पिंडवायलाभे" साधा लिक्षानी प्राप्ति थता “ समिइजोगेण" अभ्यर प्रवृत्तिना योगथी, " भाविओ अ तरप्पा" मावित मतरात्मा " निच्च" नित्य “ अहिकरणकरणकारावणपाव कम्मविरए " मननुज्ञात Hglle alr३५ सापद्यम ४२पाथी, ४२६वपाथी, सन तनी अनुमहिना ३५ ५५७मया भुत थ य छ भने "दत्तमणुण्णाय सग्गहरुइ भवइ" त्तानुज्ञात सयमा २यिवाणी थय ભાવાર્થ–સૂત્રકારે આ સૂત્ર દ્વારા અદત્તાદાન વિરમણ વ્રતની ચાથી ભાવનાનું સ્પષ્ટીકરણ કર્યું છે તે ભાવના અનુજ્ઞાત ભક્તાદિ ભેજન નામની છે દાતા દ્વારા સાધુને કપે તેવી ભિક્ષા અથવા ઉપધિની પ્રાપ્તિ થઈ જાય ત્યારે તેણે કેવી રીતે તે પિતાના ઉપયોગમાં લેવી જોઈએ તે બાબતને આ ભાવનામાં વિચાર કરવામાં આવ્યું છે વધારે દાળ શાક સાથે આહાર લેવાને સાધુએ
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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