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________________ सुदशिशी टीका १०३ भू० शय्यापरिचर्मवर्जन'नामातृतीयभावनानिरूपणम्७५५ सततम्-निरन्तरम् , ' अज्ञप्पज्झाणजुत्ते' अध्यात्मध्यानयुक्तः आत्मानमधिकृत्य अध्यात्मम् आत्मालम्बनल्प यः यान तेन युक्त समन्वितः, तथा-' समिए' समिता समितिभिर्युक्त 'एगे' एक. एकाकी रागद्वेपरहित , 'धम्म' धर्म श्रुवचारित्रलक्षण ' चरेज्ज' चरेत् आचरेत् । उपसहरनाह-' एवम् ' प्रकारेण 'सिज्जासमिडजोगेण ' शग्यासमितियोगेन भारितोऽन्तरात्मानित्यम् , ' अहिक रण करणाराग्णपापम्मपिरए' अधिकरणकरणकारणपापकर्मविरत अधिकरण= शय्यापरिकल्पनायें वृक्षादीना छेदनभेदनरूप यत्मावद्य कर्म, तस्य यत्स्वय करणम्, अन्यतश्च कारण उपलक्षणत्वादनुमोदन च तद्प यत्पापकर्म ततो विरतोनिवृत्तो यः स तधोक्त , तथा-दत्तानुज्ञातानग्रहरुचिः दत्तानुज्ञातैपणीयपीठफलकादेरुपभोगकारी भाति ।। सू-८ ॥ (समाहियाले ) चित्त की स्वस्थतारूप समाधि की प्रचुर मात्रा से सहित होने के कारण समाधि पठुल, बना हुआ वह साधु (फासयतेकाण्णधीरे ) परीपहो को मरते हुए शरीर से धीर-अक्षोभ्य बना रहता है। तधा (सयय अज्झप्पज्जाणजुत्ते) निरन्तर आत्मावलम्बन रूप ध्यान से युक्त बना हुआ वह साधु (समिए) पाच समिति के पालन से (एगे) अकेला रागद्वेप रहित होकर (धम्म चरेज्ज) श्रुतचारित्ररूप धर्म का आचरण करता रहता है (एच) इस प्रकार से (सेज्जासमिहजोगेण ) शय्यासमिति के योग से (भाविओ अतरप्पा) भावित हुआ जीव ( निच्च) नित्य (अहिकरणकरणकारणपावकम्मविरए) शय्यापरिकल्पनार्थ वृक्षादिकों के छेदन भेदन रूप सावद्य अनुछान के करने दूसरों द्वारा कराने तथा अनुमोदना रूप पापकर्म से निवृत्त १२) सतमस, तया “समाहिबहुले " चित्तनी स्वस्थता३५ समाधिया मत्यत प्रभामा युद्धत डावाने सरणे समाधि , मनेसते साधु " फासयते काएणधीरे" पपलाने मडन ७२ता उता शरीरया धीर-क्षोलरहित २ छ तथा " सयय अज्झप्पज्जाणजुत्ते " निरत२ मामा मन३५ ध्यानी युक्त मनेर त साप " समिए " पाय समितिना पसनथी " एगे" असा रागद्वेष २डित थधन " धम्म चरेज" श्रुतयारित्र३५ धनु मान्य२५ उर्या ४२ छ “ एव" मा शत "सेज्जा समिइ जोगेण" शय्यासमितिना योगथी "भाविओ अतरप्पा" भावित थयेस ७५ " निच्च" नित्य "हिकरणकरणकारणपावकम्मविरए" शय्या પરિકલ્પના વૃક્ષાદિના છેદન ભેદનરૂપ સાવધ અનુષ્ઠાન કરતા, બીજા પાસે ४२पता तथा मनुभाहना३५ पा५४थी निवृत थ य छे तथा “दत्तम-'
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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