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________________ - ७५४ प्रश्नध्याकरणसूत्र न कुर्यात् । अय भार -शीती निनिस्थानस्य ग्रीमती मातम्यानस्य पान्छा न कुर्यात् । इति । 'न य'नच 'उसमगेमु' दशमापु मत्सु 'सुभियन्व' क्षोभितव्यम् , दशमशकादीनामुपदरे सत्यपि पोमो न कर्तव्य इति भावः । तथा' अग्गीमो य ' अग्निर्धमश्र-दशमगकाटीना निवारणार्यमग्निधूमो या 'न का. यन्यो' न कर्तव्यः । एपम्-उक्तस्पेण 'सनमबहले ' सयमनालासयमा पट कायरक्षणलक्षण , स पहल प्रचुरो यस्य मतथोक्तः, तपा-सपरपहले ' सबर बहुल सरापागातिपाताधासमहारनिरोपा, स बहुप्रचुरो यस्य सत थोक्ता, तथा-'संयुड पहले ' सटतरहुल सहतपायेन्द्रियजयः, तद् बहुल प्रचुर यस्य स तथोक्तः, तथा-' समाहिपहले' समाधिपहल:=पमापि चित्त स्वास्थ्य, स बहुल• प्रचुरो यस्य स तथोक्तः, एतागो धीरे धीर-अक्षोभ्य' 'काएण' कायेन 'फासयते' स्पृशन्-परीपहान् गहमानइत्यर्थः, तथा-'सयय' उत्सुकता-भावना रखे अर्थात् शीतऋतु में निर्वातस्थान की ओर ग्रीष्म ऋतु में हवादार स्थान की इच्छा न करे। तथा-(न उसमसगेसुखुभियव्व ) ठहरे हुए स्थान में दशमशक आदि का उपद्रव होवे ता उससे उसको क्षभित नहीं शेना चाहिये। और (अग्गी धूमो न काययो) न उल स्थान पर उन दशाशक आदि को भगाने के निमित्त अग्नि वा धूओ करवाना चाहिये। (एच) इस प्रकार की प्रवृत्ति रखने से (सजमबरले) षट्काय रक्षणरूप सयम की प्रचुर मात्रा स युक्त सयम पहल, तथा (सबरबहले ) प्राणात्तिपात आदि आत्रव द्वार के निरोध रूप सवर की प्रचुर मात्रा से सरित होने के कारण सवर बहुल, तथा ( सवुडवले) कपाय और इन्द्रियों के जीतने रूप सवृत की प्रचुर मात्रा से रहित होने के कारण सवृतबहुले, तथा તે નિર્યાત સ્થાનની કે પ્રવાસસ્થાનની ઉત્સુકતા રાખે નહી, એટલે કે શિયાળામાં પવન વિનાના સ્થાનની અને ઉનાળામાં હવા આવે તેવા સ્થાનની તેણે ઈચ્છા २वी नडी तथा "न डसमसगेसु खुमियव्य" तेमन यालवाना स्थानमा स भ-७२ माहिनी पद्रव हाय तो तथा तेहए क्षोम पाम नही मने " अग्गी भूमो न कायवो" भरे ते अस, भ२७२ साहिन सा31 माटते स्थानमा અગ્નિ કે ધુમાડે કરાવો જોઈએ નહી ઇ » આ પ્રકારની પ્રવૃત્તિ रामपाथी "सजम बहुले " ७४१५ २क्षय३५ सयभनी अत्यत मात्राथी युत सयमाहुर तथा " सबरबहुले" प्रातिपात मामासारना निश५३५ सपनी sी मात्राथी युक्त पाने जारहरी स२पडल, तथा " सबुडबहुले" કષાય અને ઇનિદ્રાને જીતનાર સવૃતની અતિ અધિક માત્રાથી યુક્ત હોવાને
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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