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सुर्दाशिनीटीका अ० ३ सू० १ अदत्तादानविरमणस्वरूपनिरूपणम्
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सवरे साधुभि कि कर्तव्यम् १ इत्याह- ' जत्थ य यत्र च - तृतीयसवरद्वारे गामागर - नगर-निगम - खेड - कन्नड-मडन- दोणमुह-सनाह-पट्टणासमगय च = ग्रामाकर - नगर निगम - खेट कट-मडम्न-द्रोणमुस-समान- पचनाश्रमगत चग्रामाकरनगरनिगमखेटकर्नटमडम्पद्रोणमुखमा पट्टाश्रमाणा व्यारया पूर्वमुक्ताः, तद्गतच 'किंचिदव्य ' किंचिद्रव्य किमपिद्रव्यम्, तदेवाह - 'मणिमुत्तसिल्प्पनालकस - दूस-यक- वरकणग - रयणमाइ ' मणिमुक्ताशिला - प्रवाल कास्य-दृष्य-रजत-वरकनक - रत्नादि- मणिः - पद्मरागादिः, मुक्ता = मुक्ताफल, 'शिला' बहुमूल्यपापाणपण्डम् मचाल = विद्रुमः ' मूंगा ' इति भाषाप्रसिद्ध, 6 कस ' कास्य - ' कामा ' इति प्रसिद्धम् ' ' दृष्य ' वस्त्रनिशेषः, रजत = ' चान्दी' इतिभाषामसिद्धानरकनक = त्वन्तरापेक्षया श्रेष्ठ सुपर्ण, रत्न= कर्केतनादिकम् आदि यस्य तत्तथाभूत द्रव्य 'पडिय' पतित - वस्त्राञ्चलादेः, 'पट्ट' प्रस्मृत-कुनापि विस्मृत ''णिष्ट= गवेषरुद्भिरपि न प्राप्तम् तथाभूत मणिमुक्तादिक
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तृतीय सवरद्वार में सावुजनो को क्या करना चाहिये इसके लिये सूत्र कार कहते हैं - ( जत्य य ) इस तृतीय सवरद्वार में ( गामागरनगरनिगमखेड कवड मंडप दोणमुहसवार पट्टणासमगय च ) साधुजनों को ग्राम, आकर, नगर निगम, खेट, कट, मडम्ब, द्रोणमुख, सवाह, पहन, आश्रम, इन स्थानों में, रही हुई ( किंचि दव्व ) कुछ भी वस्तु ( मणिमुत्तसिलप्पचालक सदूसरयकवर कणगरयणमाइ ) मणि, मुक्ता, शिला, प्रवाल, कास्य, दूष्य- वस्त्रविशेष, रजत-चादी, सुवर्ण, रत्न आदि वस्तु (पडिय) किसी की गिर गई हो, (पम्हट्ट ) भूली हुई हो, (विपण ) ढूंढने पर भी नही मिली हो, (न कप्पर करसह कहेउ वा गेતૃતીય. સ વરદ્વારમા સાધુજનેએ શુ કરવુ જોઈ એ તે બતાવવાને માટે સૂત્રકાર
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छे-" जत्थ य આ ત્રીજા સવરદ્વારમા 'गामागारनगरनिगम खेडकव्वड मड बदोणामुहसबाहपट्टण समगय च" साधु नामे श्रम, नगर, આફર निगम, पेट, कुट, भडभ्ण, द्रोणुभुभ, सवाई, चट्टन, आश्रम, से स्थानाभा रहेवी ' किंचि दव्य " अव पशु वस्तु मणिमुत्तसिलप्पवालकसदूसरयकवर क्णगरयणमाइ " भणि, भुस्ता, शिक्षा, प्रवाज, जस्य, हृप्य गोड भार वस्त्र, २०४ - आदि, सुवाश रत्न माहि वस्तुओ " पडिय" जेधनी पड़ी गई होय, पम्हटु " अ लृली गयु होय, "घिप्पणट्ट ” શોધવા છતા પણ જડી न होय, "न कप्ाइ कस्सइ कहेउवा गेण्हेउवा " तेने सेवानु सयत अस
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