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________________ ५१२ मध्याकरणसूत्रे ' असतोसेति विय' असतोष: ३०, इत्यपि च ' तस्म' तस्य परिग्रहस्य 'एयाणि ' एतानि ' एवमादि प्रमादीनि उक्तप्रकाराणि ' नामरेज्जाणि ' नामधेयानि नामानि हुति भवन्ति ' तीस ' त्रिंशत् । परिग्रहस्य परिग्रहाय - सतोपान्तानि निशन्नामधेयानि भवन्तीत्यर्थः । अनेन ' यन्नामेती' द्वितीयमन्तरद्वारमुक्तम् ||म्०२|| 1 अथ यथा ये परिग्रहं कुर्वन्ति तानाह--' त चपुणे ' इत्यादि ; मूलम् - तच पुण परिग्गहं ममायति लोभवत्था भवणवर विमाणवासिणो परिग्गह रुईयी परिग्गहे विविहकरणबुद्धी देवनिकाया य असुरभुयगसुवन्नचिज्जुजलण-दीव - उदहि दिसि -पवण - थणिय-अणपन्नियपणपन्निय इसिवाइय भूयवाइय कंदिय महाकदिय कुण्ड पतग देवा पिसाय - भूय- जक्खरक्खर - किनर किपुरिस महोरगगधव्वाय तिरियवासी । पचनाम आसक्ति है २९ | परिग्रही जीव को जीवनभर सुखप्रद सतोष नही होता है अतः असतोपका हेतु होने से इसका नाम भी असतोष है ३० | इस प्रकार इस परिग्रह के ये पूर्वोक्त प्रकार से तीस नाम हैं। इस तरह इस सत्र द्वारा सूत्रकार ने " यन्नाम " यह द्वितीय अन्तरद्वार कहा है । भावार्थ- परिग्रह नामके पचम आसव द्वार के कितने नाम गुण fromन्न हो सकते हैं यह बात सूत्रकार ने इस सूत्र द्वारा प्रदर्शित की है । परिग्रह से लेकर असतोप पर्यन्त जो ये तीस नाम प्रकट किये हैं वे कहीं तो कारण में कार्य के उपचार से और कही कार्य में २ कारण के उपचार से बनाये गये हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥ सू० २ ॥ होवाथी तेनु नाम ' आसकि' छे (३०) परीग्रही लवने लवनभर सुभग्रह सतो! थतो नथी, तेथी असतोषना अरइय होवाथी तेनु नाम ' असतोष' છે. આ પ્રમાણે પરિગ્રહના પૂર્વોક્ત ત્રીસ નામ છે આ રીતે આ સૂત્રદ્વારા सूत्रारे यन्नाम નામના બીજા અન્તર દ્વારનુ કથન કર્યુ છે , ભાવાર્થ-પરિગ્રહ નામના પાચમા આસવ દ્વારના ગુણ પ્રમાણે કેટલા નામ હાઇ શકે છે તે ખાખત સૂત્રકારે આ સૂત્રમા દર્શાવી છે પરિગ્રહથી લઈ ને અસ તાષ સુધીના જે ત્રીસ નામેા પ્રગટ કર્યો છે તેમાના કેટલાક કારણમાં કાના ઉપચારથી અને ફેટલાક કાર્ય મા કારણના ઉપચારથી અનાવવામાં मावेस छे, ओभ सभवानु छे ॥ सू- १॥
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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