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________________ ५४ प्रश्नध्याकरणसत्रे सभाषः १३, 'महट्टी' महातिः, महाःकारगवा १३, 'उमाण' उपकरण सामग्री १५, 'सरसप्पणय' सरक्षणा च-शरीरादीना मरक्षणमित्यर्थः १६, 'भारो' भार-अष्ट कर्मभारकारणम् १७, 'मपायुपायगो' सपातीपारका-सपातानादुर्गती प्रस्थितानाम् उपायको मार्गमूतः१८, 'कलिकरटो' करिफरण्ड'-करीनां कलहानां करण्ड पानविशेष इस कलिकरण्ड १९, 'परिन्यरो' प्रविस्तर:धनधान्यादिविस्तारः २०, 'अणत्यो ' अनर्थ'-अनर्थकारणवाद २१, 'सयवो' है, इसलिये यह परिग्रह लोभात्मा लोम सभार है १३ । इस परिग्रह से जीव को पड़ी से बड़ी आत्तियों का सामना करना पड़ता है अत: उन आत्तियों का करण हराने से यह परिग्रह महानिरूप है १४ । इस परिग्रह के प्रभाव से ही विविध प्रकार की सामग्री जीव एकत्रित करता है अतः इसका नाम उपकरण है १५ । परिग्रही जीव अपनेशरीर आदि पदार्थो की रक्षा करने में विशेष सापान रहता है। इसलिये इसका नाम सरक्षण है १६ । परिग्रही जीव के परिणामों की सरलेशता के कारण अष्टविध कमों का वध बहुत तीव्र होता है इसलिये इसका नाम मार है १७ । परिग्रही जीव का पतन दुर्गति में होता है अतः दुर्गति में पतन होने का यह मार्गभूत है इसलिये इसका नाम संपातोपायक है १८ । परिग्रही जीव के अनेक शत्रु उत्पन्न हो जाते है हर एक के साथ कलह आदि होने लगते है इसलिये यह परिग्रह कलही का एक प्रकार का करण्डपिटारा है-इसलिये इसका नाम कलह करण्ड है १९ । परिग्रही जीव अपने धन धान्य आदि पदार्थो का विस्तार करने પરિગ્રહ લોભાત્મા લેભ સ્વભાવ છે (૧૪) આ પરિગ્રહને લીધે છોને મોટામાં મેટી આફતો સામનો કરવો પડે છે, તેથી એ આતિ (આફત) નું કારણે હોવાથી તે પરિગ્રહ મહાતિરૂપ છે (૧૫) તે પરિગ્રહના પ્રભાવથી જ વિવિધ પ્રકારની सामग्री पत्रित अरे छ, तेथी तेनु नाम' उपकरण 'छे (१६) परिहा જીવ પિતાના શરીર આદિ પદાર્થોના રક્ષણ માટે વધારે સાવચેત રહે છે, तथी तनु नाम 'सरक्षण' छ (१७) परियडी बनी वृत्तिमानी सथित તાને કારણે અષ્ટવિધ કમને બધ ઘણે જ તીન હોય છે, તેથી તેનું નામ 'भार' छ परिघडी आतिभा ५ छ गतिभा पतन ४२२ववाना १९३५ डावाने २0 तेनु नाम 'सपातोपायक' छ (१४) परियडी अपना અનેક શત્રુઓ પેદા થાય છે દરેકની સાથે તેને કલહ આદિ થયા કરે છે તે કાગણે ને પરિગ્રહ કલહના એક પ્રકારના કરડિયા જેવો હોવાથી તેનું નામ 'कलहकरण्ड' छे (२०) परिअड ७१ पोताना धन धान्य माहियाना
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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