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________________ केसभूमी सामलि-पोंडघण निचियच्छोडिय-मिडरिसय पस स्थसुहमलखणसुगंधिसुदरभुयमोयगभिंग-नीलकजलपहिट्ठ भमरगण-निद्धनिउरव-निचियकुचिय - पयाहिणावत्तमुसि रया सुजाय-सुविभत्त-सगयगा-लसणवजणगुणोववेया पसस्थवत्तीसलक्सणधरा हसस्सरा कोचस्सरा दंदुहिस्सरासीहस्सरा मेहस्सरा ओघस्सरा सुस्सरा सुस्सरनिग्घोसा बजरिसह नारायसघयणा समचउरमसठाणसठिया घायउज्जो वियगमगा पसत्थछवी निरायका कफगहणी कबोयपरिणामा सउणिपोसापिट्टतरोरुपरिणया पउमुप्पल-सारसगध-साससुरभिवयणा अणुलोमवाउवेगा अवदायनिढकोसा विग्गहियउण्णाय कुच्छीअमयरसफलाहारी तिगाउय समुच्छियातिप लिओवमहितिया तिपिणय पलिओवमाइ परमाउ पालइत्ता तेवि उवणमति मरणधम्म अवित्तिता कामाण ॥ सू० ११ ॥ टीका:-'भुयगी-सर-निउल-भोग-आयाण-फलिह-उच्छढ़दीवाहू' तत्र'भुयगीसर' भुजगेश्वर सर्पराजस्तस्य यो विपुलो भोगः-महान् काय. तद्वत् तथा ' आयाण' आन-आदीयत इत्यादानम् आदेया-सुन्दरो य. 'फालह' परिघा-कपाटरोधनकाठ, स च 'उच्छ्ह उसिप्त-स्वस्थानाद पहिनिष्कासितः, तद्वत् 'दीह' दो? वाह येपा ते तथा भुजगनुल्यपरिघाल्यलम्बमान फिर ये भोगभूमि के जीव कैसे होते हैं ? इसी विषय को सूत्रकार पुन स्पष्ट करते है-'भुयगीसर ० ' इत्यादि । टीकार्थ.- (भुयगीसर-विउलभोग-आयाण-फलिह-उच्छूढदोह पाह) सर्पराज के विपुल शरीर के समान तथा अपने स्थान से बहार किये हुए सुन्दर परिघा के समान, जिनकी दोनो भुजाये दोघे-ल बा તે ગભૂમિના જીવે કેવા હોય છે, તેનું સૂત્રકાર હજી વધુ સ્પષ્ટીકરણ, ४२ छ " भुयगीसर " त्यादि -भयगीसर-विउल-भोग-आयाणफलिह-उच्छददीह-वाह" भनी भन्ने - ભુજાઓ સર્પરાજના વિશાળ શરીર જેવી, તથા તેના સ્થાનેથી બહાર કાઢવામાં
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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