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________________ ४१२ तरउपयइवित्यिग्ण पिल्यच्या 'फनफशिलातर-प्रशस्त ममतलोपचित विस्तीर्ण पृथुलपक्षसः कनकशिलावल = सुवर्णशिलापट्टकमिर प्रशस्त समतलम् अविषम उपचित-पुष्ट-पिस्तीर्ण-विशाल तथा पृथुल-स्मूल पसपर स्थल येषा ते तथा 'जुयसणिमपीणरइय-पीपर-पउह सहिय-मुसिद्धि रिमिलढ-मुणिचिय-पूण पिर मुमध, सधी' तत्र 'जुयसणिम' युगसनिमी युगकाटतन्यो 'पीण' पीनी स्थूलो 'रइय' रतिदोरमणीयो पीरी-पुप्टो 'पट' प्रकोष्टी हस्तमणिवत्वमदेवीतथा 'सठिय' सस्थिताम्यस्थानविशेषयुक्ता 'मुसिलिट्ठ मुशिया मुमिलिताः 'पिसिट्ठलद्ध' रिशिष्ट-टा-मुमनोहराः 'मुणिचिय' मुनिचिताः = सुमगठिताः घना 'घिर' स्थिरा.गुढा मुखत्याः शोभनाययनसन्निवेशयुक्ताः मन्धयःअस्थि सन्धानानि येपा ते तया, 'पुरचरफलिह-बहियभुया' पुरवरपरिवातित भुना=पुरचरपरिया=नगरद्वारकपाटरोधनकाप्ठयद् पर्वितीचर्तुली भुनौ-बार येपा ते तथा । एतादृशास्तेऽपि काममोगैरवसा एर मरणधर्ममुपनमन्तीतिसम्पन्धः ॥ मू० १०॥ समान निर्मल, सुन्दर रोगरहित शरीर के धारी रोते है ( कगगसिगातलपसत्यममतल उवइयवित्थिणपिटलपच्छा ) तथा जिनका वक्ष स्थल सुवर्णेशिला के पट्टक समान प्रशस्त एव समतल वाला होता ह उपचित-पुष्ट होता है, विस्तीर्ण होता है तथा पृयुल-स्थूल-मोटाहोता है (जुयसणीभपीण-रइयपीवरपउद्यसठियमुसिलिट्ठविसिहलहसुगिचियघणथिरसुधसधी) इनका मणिध प्रदेश जुआ के समान स्थूल, रमणीय और पुष्ट होता है । तथा इनके हाड़ों की सधिया सस्थान विशेष से युक्त, परस्पर अच्छी तरह मिली हुई, मनोहर, सुसगठित घनीभूत, सुदृढ़ एव अच्छी अवयवों की रचना से युक्त होती है। (पुरवरफलिहवाहियभुया) इनके दोनो याहु नगर के द्वार के उतम “જેઓ સૂવર્ણના આભૂષણે જેવું નિર્મળ, સુંદર અને નીરોગી શરીર ધરાવે छ, "कणगसिलातलपसत्यसमतल उपइयवित्थिण्णपिलबच्छा" तथा मना છાતીના ભાગ સુવર્ણ શિલા જે પ્રશસ્ત સમતલ. ઉપચિત-પુષ્ટ, વિસ્તીર્ણ विश तथा पृथुल-भोट हाय , "जुयस णिभ-पीण-रइय-पीवर-पउट-स ठिय सुसिलिट्ठ-विसिट्ठ-लट्ठ-सुणिचिय-घणथिर-सुब धसधी" तमना मला धूसरावा ધૂળ, રમણીય અને પુષ્ટ હોય છે તથા તેમના અસ્થિોના સાધ સુવ્યવસ્થિત અરસ્પર સારી રીતે જોડાયેલ, મનોહર, સુસ ગતિ, ઘનીભૂત, સુદઢ, અને अपयवानी सु६२ स्यना वा डाय “पुरवरफलिहवद्रियभुया" भना અને ભુજા નગરના દરવાજાના ઉત્તમ ભેગળા જેવી ગોળાકાર હોય છે એવા
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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