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________________ pte प्रश्नव्याकरणसूत्रे समस्तरत्नानि चक्ररत्नानि च यस्ते तथा जन पर मधानाः प्रधानभूताः चतुर्दश रत्नानि यथा “रोणानः १ गाधाः २ पुगेडिय= तुरग ४ बट्टई५ गय६ इत्थी ७ । चक ८ छत्त ९ चम्म १०, मणि ११ ग्रामणि १२ राग १३ दडोय १४ ॥ " छाया - सेनापति १ गृहपति पुरोहित तुरग ४ ७ गज ६ यि ७ । चक्र ८ छन ९ चर्म १० मणि ११ कारिणी १२ खगः १३ दड १४ ॥" इति चतुर्दशरत्नानि । तथा ' नवनिष्पिणी ' नवनिधिपतयः = नवनिधिनां स्वा मिनः । नवनिधयो यथा " नेसप्पे १ प २ पिंगले य ३ सव्वरयणे ४ तहामहा परमे ५ । 33 काले ६ महाकाले ७ माणत्रगमहानिहि ८ ससे ९ ॥ १ ॥ " इति, छाया - नैसर्पः १ पण्डुक २ पिङ्गलय ३ सर्वरत्न ४ तथा महापद्मम् ५ । कालय ६ महाकाल ७ मागनकमहानिधि ८ श९ ॥ १ ॥ ' समिद्धकोसा ' समृद्ध कोशाः परिपूर्णभाण्डागाराः, 'चाउरता' चतुरन्ता = त्रिप्पन्तेषु समुद्रः, चनुर्थेऽन्ते च हिमवान् पर्वत, एव चत्वारोऽन्ताः = भूविभागाः जो प्राप्त समस्त रत्नों से एच चक्ररत्न से पुरूषों में प्रधानभूत माने जाते है चक्रवर्ती जिन १४ चौदह रत्नों के अधिपति माने जाते है - वे रत्न ये हैं -- (१) सेनापति, (२) गाधापति, (३) पुरोहित (४) तुरग (५) वर्धकि, (६) गज, (७) स्त्री, (८) चक्र, (९) छत्र, (१०) चर्म, (११) मणि, (१२) काकिणी, (१३) खड्ग (१४) दड | ( नवनिहिपणो ) तथा नवनिधियो के जो भोक्ता होते हैं, नवनिधिया इस प्रकार है- (१) नैसर्य, (२) पडुक, (३) पिंगल, (४) सर्वरत्न, (५) महापद्म, (६) काल, (७) महाकाल (८) माणवक और (९) शख । ( समिद्ध कोसा ) भाण्डागार सदा हरएक वस्तु से मरपुर बना रहता है, तथा ( चाउरता ) जो हिमवत् पर्वत ,, 'शोध' रत्नाना समत्तरयणचकरयण पहाणा તથા જે પ્રાપ્ત થયેલા સમસ્ત રત્નાથી અને ચક્રરત્નથી પુરુષામા શ્રેષ્ઠ ગણાય છે ચક્રવત જે ૧૪ अधियति भनाय छे, ते थोः रत्नो नीचे प्रमाणे छे—(१) सेनायति, (२) गाथापति, (3) युरोडित, (४) तुरण, (4) वर्धङ, (६) गन, (७) स्त्री, (c) A४, (ङ) छत्र, (१०) अभ, (११) मणि, (१२) अट्ठिएगी, (१३) अड्ग अ (૧૪) દડ તથા તે ચક્રવર્તી રાજાએ નવનિધિયાને ભગવે છે તે નવિધિ नीचे प्रभाव छे – (१) नैसर्य, (२) 48 (3) पिंगल, (४) सर्वरत्न, महापद्म, (६) अस, (७) भडाअस, (८) भाव कोसा" तेमना लडार सहा रे! वस्तुथी भरपूर ૫ ८८ भने (ङ) श समिद्ध रहे छे, चाउर ता 1 66 27
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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