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________________ মকায় येपा ते तथा परमसुगन्धिद्रव्यचन्दनचूर्णचम्पादिमुगमम्भारसम्भृतमस्तका इत्यर्थः, 'कप्पियछेयायरियकयरध्यमाडगगयतुडियारभृमणपिगटेहा' ---कल्पितकाचार्यमुकृतरविदमालास्टकाटितपरभूपणपिनद्ध देहाः = तत्र काल्पितानि = परिधृतानि छेकाचार्येण = शिरिपारेण मुख्वानि - मुटु रचितानि रतिदानि = प्रेमननकानि यानि माग फटकागदटितवरभूपणानिमाला-गुवर्णमाला:कटका कङ्कणानि ' कडा' इति प्रसिद्धानि, दानिकेयूराणि त्रुटिताः माहुरक्षिकाः, तथा परभूपणानि मुटकुण्डलादिनि च ते पिनद्धा व्याप्तो देहो येपा ते तथा मुकुटकेयूरकरणादिविविधभूषणभूपितदेहा इत्यर्थः, 'एकालिकठमुरइयालपालपपलपमाणमुस्यपडउत्तरिनमुद्दियापिंगलं गुलिया । तर-'एकालिकठमुरड्यान्डा' एकाठीण्ठमुरचितवक्षस्काःएकावली विविधमणिग्रथितहार कण्ठे-कण्ठपदेशे सुरचिता-परिधृता वक्षसिक्षा स्थले येपा ते तथा 'पालपपलपमाणमुरुयपडउत्तरिज्जा' प्रालम्बमलम्बमान के पुष्पो से जिनका मस्तक सदा शोभित रहता है, अर्थात् परममुग धित द्रव्यो से चदन के चूर्ण से चम्पकादि कुसुमों के सभार से जिनका मस्तक निरन्तर भरा रहता है । तथा (कप्पिय व्यायरिय-मुकय-रइय माल कडग गय तुडिय वर भूसणपिणद्ध देहा) जिनकी देह अच्छी तरह से पहिरे गये आभूपणों से, सुवर्ण की मालाओ से, कटकों कड़ो से, अगदो- (भुजबधो ) से, त्रुटितों से बाहुरक्षिको से, एव मुकुट कुडल आदि उत्तम अलकारो से, कि जो कारीगरों के द्वारा बात ही अच्छी तरह बनाये हुए होते है तथा प्रेमोत्पादक होते है इनसे इनकी देह व्याप्त रहती है (एगावलिकठ सुरइय वच्छपालयपलबमाणसुकयपड उत्तरिज्ज પુથી જેમના મસ્તક સદા સુશોભિત રહે છે, એટલે કે અતિરાય સુગ ધચુક્ત દ્રવ્યથી, ચદનના ચૂર્ણથી, ચપક આદિ પુષ્પોના સભારથી જેમના भस्त सहा युत २७ छ, तथा “कप्पिय छेयायरिय, सुकय,-रइय,-माल, फडग-गय, तुडिय, वर भूसणपिणनद्धदेहा" भनासरी२ सारी शेते परेस माभूषाथा, सुवानी भाणामाथी माथी, " अगदो" ' ५ धे' થી, તૃટિતેથી-બાહુરક્ષિકેથી, અને મુગટ કુડળ આદિ ઉત્તમ અલ કારોથી આભષિત રહે છે જે અલ કારે સારા કારીગરેએ સારી રીતે બનાવેલા હોય तथा भारपाडाय छे “एगावलि-कठ-सुरइवच्छ-पालब-पलबमाण-सुकय पडउत्तरिज्ज-मुहिया-पिंगलंगुलिया" तथा विविध भयो । २ भनी
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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