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सुदर्शिनी टीका अ० ३ सू० १० ससारसागरस्वरूपनिरूपणम्
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न्तस्तलमित्यर्थः तमे भूत ससारसागर 'सरीरमणोमयाणि दुक्खाणि उप्पियता' शरीरमनोमयानि दुःशानि उत्पनन्तः = कायिकानि मानसिकानि च विविधानि दुःखानि आस्वादयन्तः अनुभवन्त इत्यर्थः, 'सायासाय परितारणमय उजड्ड नियु इयं वरेता साताsसातपरितापनमयमुद्युडननिब्रटनक कुर्नन्त' = सुखदुखतापात्मकमुन्मज्जन निमज्जनमनुभनन्त सात=मुस तदात्मकमुन्मज्जनमसातपरितापन दुःखसन्तापस्तदात्मक निमज्जनमनुभवन्त ' चउरतमहत ' चतुरन्तमहान्व = चतुरन्त नरकादि चतुर्विभागयुक्त महान्तम् अनन्त जन्ममरणादिदुःखयुक्तलात् । तथा अणरयग्ग अनयदग्र=अनन्तम्-अन्वरहितमित्यर्थ', 'रुद्द ' रुद्र = सफल हैं और नाना प्रकार के दुःखों को भोगा करते है. अतः यह दुःख समूह ही इस ससार समुद्र में अवाह जल भरा हुआ है । उसमें ही ये जीव बहुत अधिक रूप में किया लेते रहते हैं, उन्मग्न, निमग्न होते रहते हून हैं । फिर वे इसके अन्तस्तल को कैसे प्राप्त कर सकते हैं ? नही कर सकते । इसलिये सूत्रकार ने ऐसे जीवों के लिये इसका पार पाना चाह प्राप्त करना - दुशक्य- अमभव कहा है । ( सरीरमणोमवाणी ) इस ससार सागर में पडे हुऐ जीव शारीरिक एवं मानसिक ( दुखाणि ) दुःखों का ही (उपियता) अनुभव करते है । तथा (सायासाय परितावणमय) सातासात परितापन रूप (उच्डनियुडय) उन्मज्जन निमज्जन अर्थात् सातात्मक उन्मज्जन तथा असातात्मक एव परितापात्मक निमजन (करेला) करने में तल्लीन हुए ये जीव ( चाउरतमहत ) नरकादि गति रूप चार विभागों से युक्त तथा जन्म मरणादि के अनन्त दुःखों महान्, (अणवयग्ग) अन्तरहित (रु) समस्त प्राणियोको भयजनक,
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દુખા ભાગવ્યા કરે છે તેથી આ સ સારસાગરમાં દુખ સમૂહુરૂપ અપાર જળ ભરેલુ છે તેમા જ તે જીવે વરવાર ડૂબકીએ ખાધા કરે છે તેા પછી તેએ તેના કિનારે તે પહેાચી કેવી રીતે શકે? તે કારણે સૂત્રકારે એવા भवाने भाटे तेने! चार पाभवानु अर्य भगस्य मताव्यु छे " सरीरमणोमया णि " मा ससार भागरमा पसा वा शारीरिड भानसिङ" ' दुम्साणि " हु मोनो " उप्पियता " અનુભવ કરે છે તથા " सायासायपरितावणमय " સાતાસાત પિરતાપન રૂપ ઉન્મજન નિમજ્જન એટલે સાતાત્મક ઉન્મજન ( પાણીની ઉપર આવવુ તે) તથા અસાતાત્મક અને तापात्म निभन्न ( डूणवु ते ) " करे ता " अश्वामा तीन थयेस ते વે! चाउरतमहत ”નરાદિ ગતિરૂપ ચાર વિભાગેાવાળા તથા જન્મ મરણાદિ દુ ખેાથી भडान, 'अणवयग्ग " अन्तरडित, " रुद्द " मघा आश्रमाने
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उन्मुखनिन्युडय "
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