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________________ मुदशिनो टोका अ० ३ सू० १९ कोशाधोरा कीदृश फल लभन्ते' ३३९ शयनीयवस्नुदानमित्युभयोर्भेद. पादपतन-प्रणामादिना चौराणा सत्कारसम्मानकरणम् १०, आसनम् नामनदान ११, गोपनन्नाऽनेन चौर्य कृत स्वगृहे स्थापयित्वा नास्त्यति वा कयनेन चोर समोपन १२, खण्डस्य खादन-चारेभ्योमिष्टान्नादिटान १३, तथाऽन्यन्मोहरानिक लोकप्रसिद्धया परगष्टे गत्वा वस्तु विक्रयः १४, तथा ज्ञानपूर्वक चोरोऽय' मिति शुद्धिपूर्वक पाद्याग्न्युद करज्जूना महान-मार्गगमनमापनोदार्थ पाच-पादाय हितमुप्णतेलजलादि, तस्य दान १५, पाकायर्यमग्निदानम् १६, उदकदान-पानार्य जलदान १७, तथा चोरीतगोम ठाना-विश्राम देना इसका नाम विश्राम है ९। शय्यादान और विश्राम में अन्तर केवल इतना ही है कि शय्योदान तो दूसरी जगह ठहरने पर भी दिया जा सकता है परन्तु विश्राम अपने घर में ही दिया जाता है । चौरों के चरणों पर गिरफर उनका आदर सत्कार करना इसका नाम पादपतन है १० । वैठने को आसन देना यह आसनदान है ११ । " इसने चोरी नहीं की है, घर में होने पर भी घर में चोर नहीं है" इस मकार कह कर चोर की रक्षा करना इसका नाम गोपन है १० । चोरों के लिये खाने को मिष्टान्न आदि देना इसका नाम खण्ड खादन है १३ । नाफा घदी होने पर दूसरे स्थान में, अथवा लोक प्रसिद्धि से परराष्ट्र में एकदेशसे ले जाकद दूसरे देशमें बेचना इसका नाम मोहराजिक है १४ । “ यह चोर है " ऐसा जानकर भी उसे पद्य, अग्नि, उदक, रज्जु देना, पैरों की थकावट मिटाने के लिए गर्म जल तैल आदि का देना पद्य है १५ । भोजन बनाने के लिये अग्नि देना १६ । ચેરેને પિતાના ઘરમાં આશ્રય આપવો તેને વિશ્રામ કહે છે શાદાન તથા વિશ્રામમાં તફાવત એટલે જ છે કે વ્યાદાન તે બીજી જગ્યાએ રહે તે પણ આપી શકાય છે પણ વિશ્રામ પિતાના ઘરમાં જ અપાય છે (૧૦) योराने यो नभाग तेन या सवा ७२यो, तेथे पादपतन हे छ, (११) असवान भासन मा५५, तेने आसनदान ७९ छ, (१.२) “ भामे ચોરી કરી નથી, ઘરમાં ચોર છુપાવ્યો હોય તો પણ ચોર ઘરમાં નથી ” એ પ્રમાણે ડહાને ચોરની રક્ષા કરવી, તેને કહે છે (૧૩) ચોરેને ખાવાને માટે મિષ્ટાન્ન દેવું, તેને auggવન કહે છે (૧૪) નાકાબ ધી હોવા છતા બીજી જગ્યાએ અથવા એક દેરામાથી લઈ જઈને બીજા દેશમાં માલ वयवो, तेरे मोहराजिक ८ (१५) “ योर छे" मेवी २ डापा છતા પણ તેને પદ્ય, અગ્નિ, ઉદન (પોણ), રજુ (દેડુ) દેવુ તે પણ ચોરીના જ પ્રકારે છે, પગને થાક દૂર કરવાને માટે ગરમ પાણી, તેલ આદિ
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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