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________________ PI racter सूत्रे 'अट्टारसम्मकारिणो ' अष्टादशकर्मकारिणः =अष्टादशचौरममृतिकारकाः अष्टा भवति तत्कारका इत्यर्थः । अय चौरस्य चौर्यकर्मणथ लक्षणमुक्त ३३६ दशमकारै ग्रन्थान्तरे -- "} - "चौरः १, चौरापको २, मन्त्री ३, भेदज्ञः ४, काणककयी ७ । अन्नदः ६, स्थानदचैन ७, चौरः सप्तभिः स्मृतः ॥ १ ॥ चौरचर्यकारकः १, चौरापक' = चौराय वस्तुसमर्पकः २ मन्त्री चौराय सम्मतिदायकः ३, भेद = कुन कस्य गृहे कया रीत्या कस्मिन् समये चौरी कर्तव्ये' -त्यादि भेदज्ञातार' ४, काणकक्रयी-चौरा नीत बहुमूल्य वस्तु काणक हीन कृत्वा य क्रीमति सः ५, अनौराय पोयमन्नदायक, ६ स्थानदः = चौराय विश्रामा स्वगृहादी स्थानदायकः ७, इति सप्तविधौर । अय चौर्यकर्म ययाघुरी तरह मारते हैं । (अट्ठारसम्मकारिणो ) ये चौर अठारह प्रकार से जो चौर्यकर्म किया जाना है उसमें निपुण होते है । ग्रन्थान्नर में चोर और चोरी के लक्षण इस प्रकार कहे हुए हैं" चौरः १ चौरापको २ मन्त्री ३, भेदज' ४, काणकरुपी ५ | अन्नदः ६ स्थानदश्चैव, चौरः सप्तविधः स्मृतः ॥ १॥" जो स्वय चोरी करता है १, चोरो को वस्तु देता है २, चोरो को समति देता है ३, किस समय किसके घर मे किस रीति से कहा चोरी करनी चाहिये इत्यादि रूप से जो चोरो को चोरी करने का भेद देता -- है ४, चोरो के द्वारा लाई गई वहु मूल्य वस्तु को जो अल्पमूल्य देकर खरीदता है ५, जो चोगे के लिये खाने पीने की व्यवस्था करता है ६, तथा चोरों के लिये विश्रामनिमित्त जो अपने घर आदि में स्थान देता है७ ये सब चोर हैं। इस प्रकार ये सात तरहके चोर कहे गये है ॥ १॥ १ t १„ ચાર જે અઢાર પ્રકારે ચારી કરવામા આવે છે તેમા નિપુણ હોય છે. બીજા ગ્રન્થમા ચાર અને ચારીના આ પ્રમાણે લક્ષણા મતાવ્યા છે " चौर : १ चौरापको २ मत्री ३ भेदज्ञः ४ काणकक्रयी ५ । f अन्न ६ स्थानदचैव, चौरः सप्तविव' स्मृत' ॥ १ ॥ " (१) ने पोते ४ योग उरे छे, (२) ने थोरोने वस्तुमा आाये छे, (3) ने थोरोने समति आये छे, (४) न्यारे, अना घरमा म रीते यारी કરવી જોઇએ ઇત્યાદિ પ્રકારે જે ચારાને ચેરી કરવાનુ રહસ્ય ખતાવે છે, (૫) ચારા દ્વારા ચોરી લાવવામા આવેલી કીતિ ચીજોને જે આછી કીમતે ખરીદે छे, (६) ने थोरोने भाटे भावा पीवानी व्यवस्था रे छे तथा (७) ने थोरोने પોતાના ઘરમા આશ્રય આપે છે, તે ખધા ચોર ગણાય છે, આ રીતે સાત अारना थोर मतान्या छे ॥ १॥
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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