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________________ ३० recorder 1 : 1 'उच्छलत उच्छलन्ति आकाशे उत्पवन्ति पुनः पचोणियत' मत्लवनिवृत्तानि अधोगच्छन्ति च यानि ' पाणिय' पानीपानि पाणिनी या यत्र स तथा 'पभाविय' प्रधाविताः - शीघ्र गताः 'सरफरूस 'सररूपाः = गातिशयाद अतिकर्कशाः ' पयड' प्रचण्डा:= दारुणा 'वाउलियसलिल' व्याकुलित सलिगः न्व्याकुलीकृतानि उन्मथितानि सलिलानि जानि येस्ते तथा 'फुट्टत ' स्फुटन्त परसर सङ्घ प्राप्य विच्छेद गच्छन्त ये पोसल बीचयः तखाः कल्लोला:-महातरङ्गास्तेः सहठोय स तथेति पूर्वेपा कर्मधारयस्त तथाविध 'महासा (उच्च्छलत) आकाश में उछलते हुए (पच्चोणियत ) फिर नीचे गिरते हुए (पाणिय) पानी अथवा प्राणी जिन में है ऐसी, तथा (पथाविय) शीघ्रता से उठी हुई ( खरफरुस ) अतिवेग से अत्यन्त कठोर (पयड) दारुण - भयकर अतएव (चाउदियसलिल ) जल को मथित जैसा कर दिया ऐसी, तथा (फुहत ) परस्पर के सघर्षसे विच्छिन्न -जुदी जुदी हुई ऐसी (वीचिल्लोल) छोटी पड़ी तरगों से ( संकुल ) व्याप्त ऐसे, समुद्र को, अर्थात् जो गंगा यमुना आदि नदियों के वेगो से कि जिनका विपुल जल चक्रवाल - समूह पवन के आघात से सर्वतः व्याकुलित होता रहता है, और तटमदेश तक आता रहता है, तथा महामत्स्य आदि जलचर जानवर जिसे अत्यत चचल घनाते रहते हैं, एन जो पर्यत आदिकों की महाशिलाओं पर आपायुक्त होकर अपने स्थान से आगे को बढ़ता रहता है, तथा जो गंभीर एव विपुल आवर्ती से सदा व्याप्त बना रहता है, तथा जिसमें चचल होकर पानी अथवा प्राणी चार २ इधर से उधर આકાશમા ઉછળતા " पच्चोणियत " मने श्री पाछा नीचे पडता " पाणिय " पाणी अथवा नेमा प्राणी छे, मेवा " पधाचिय " अडपथी उत्पन्न थता, 26 "" 66 गुप्पमाण "7 उच्छल त વ્યાકુળ તથા 66 ," खरफरुस " अतिवेगने अरणे अति રાય કઠોર અને વ पय ड દારુણુ હાવાને કારણે " वाउलियसलिल " पाशीनु મન્થન કરાતુ હાય એવા, તથા “સ” એક ખીન્ન સાથે અથડાવાથી વિચ્છિન્ન 66 થતા वीचिकलोल " નાના મોટા માજા એથી " सकुल વ્યાસ એવા સમ્રુ દ્રુને, એટલે કે જે ગગા ચમુના માઢિ નદીઓના વેગથી કે જેમનુ વિપુલ જળ ચક્રવાતના આઘાતથી સંત વ્યાકુલિત થતુ રહે છે, અને તટપ્રદેશ સુધી આવતું રહે છે તથા મહામત્સ્ય આદિ જળચર પશુએ જેને અતિશય નાન વતા રહે છે, અને જે પર્વત આદિના જે માટલાએ સાથે અથડાઇને પોતાના સ્થાનથી આગળ વધતુ રહે છે, જલ્દી ભરાતુ છે, તથા જે ગભીર અને વિશાળ વમળેાથી હંમેશા વ્યાપ્ત રહે છે, તથા જેમા પાણી અને પ્રાણી ચ ચળ
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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