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________________ १९८ प्रभृतीनां फलकखेन= कोलाहछेन फलित = युक्तम्, 'पापालक उससहरु सवायवसवेगसलिलउद्गम्ममाणदगरय रयधयार ' पातालकलशसह नाव शोग सलिलोद्वम्पमा नोदकर जोरयाऽन्धकार = वन 'पायान्कन्ससहम्स' पावालकलशाना यानि सहस्राणि ते 'वायसंवेग' पादायुरशाद बेगयुक्त यत् 'सलिलउद्धमादगरयर यधयारे' तन सल्=िमुद्र वस्मादुद्रम्यमानम् उच्छलद् यदुदकर= जलविन्दुस्तस्य रयो वेगस्तेनाऽन्धकारो यत्र स तथा तम्, 'परफेणपरधवलपुल पुलसमुट्टियाहहास ' वरफेन मचुरधवलपुल वृत्थिताहास = वरफेनः = = अतिस्वच्छः फेनः ' समुद्र झाग ' इति प्रसिद्ध स प्रचुरो धनल' = श्वेतवर्णः 4 'पुलपुल' इति निरन्तर समुत्थित = उद्गत स एन अट्टहासो यत्र स तथा त फेन हासयोः शुक्लत्वेन साम्याद् रूपकालङ्कारेण निरूपितम् । 'मारुयविक्तुम्भमाण पाणिय' मारुतविक्षोभ्यमाणपानीय मारुतेन=नायुना विक्षोभ्यमाणम् = आलोच्यमान पानीय यत्र स तथा त 'जलमालुपहलिय ' जलमालोत्पलहुलिय= जलमालाना =नीरतरङ्गाणामुत्पलः=समूह ' हुलिय' शीघ्र = पुनः पुनस्तरङ्गान्तरमुत्पद्यमान यत्र स तथा त ' अविय' अपि च 4 समत ओक्सुभिय- लुलिय~ खोक्सुभमाणके कल कल शब्द से जो युक्त हो रहा है, तथा ( पायाल कलससहस्स) सैकडों पाताल कलशो के ( वायुवसवेग ) यु के सयोग से वेगयुक्त बने हुए (सलिल उद्धम्ममाणद गरयरयधयार ) जल की उछलती हुई बून्दो के समुदाय से जो अधकार युक्त जैसा बना हुआ है, (वरफेणपर-धवल-पुलपुल-समुट्ठियाहास) जो अपने स्वच्छ प्रचुर धवल वर्ण वाले फेन से मानों निरन्तर हँस ही रहा है, तथा (मारुयविक्खुन्भमा णपाणिघ) वायु से जिसका जल आलोड यमान हो रहा है, तथा (जल मालुप्पलहुलिय) जिसमें पानी का समूह जल्दी से दूसरी तरंग उत्पन्न कर रहा है, (अवि ) तथा जो (समतओ खुभिय) पवन के आघात 66 " वायुनी તથ્ય पायाल कलस सहस्स" सेडो पाता उजशोना " वायुवसवेग સચેાગથી વેગયુક્ત બનેલ "" " सलिलउद्धम्ममाणदगरयस्यधयार જળના ઉડતા मिन्दुभोना समुहायथी ने अधज़र युक्त मनेस छे, " वरफेण-पउर-धवल पुल पुल - समुट्ठियाट्टहास " ने पोताना स्वच्छ भने अत्यंत सह रंगना ीशु व જાણે નિસ્ તર હસી રહ્યો છે, તથા मारुयविक्खुच्भमाणपाणिय " वायुथी જેનુ પાણી કપી રહ્યું છે ગતિમાન અન્ય છે તથા 16 << જેમા પાણીના સમૂહ જલ્દીથી એક हरी रहेस छे, " अविय તથા જે जमालुप्पलहुलिय" તરગમાથી મીનુ તર ગ~( માજી ) ઉત્પન્ન समतओखुभिय" पवनना साधातथी " 66
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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