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________________ सुदशिनी टोका अ. ३ सू० । परधनलुन्धनृपस्वरूपनिरूपणम् २७२ सग्रामे 'अश्वयति' अतिपतन्ति-युद्ध कतुं प्रवर्तन्ते । कथ भूताः' इत्याह'सष्णपद्धपडियर-उप्पाडियचिंधपट्टगहियाउहपहरणा' सन्नद्धबद्धपरिसरोत्साटितचिन्हपटगृहीतायुधमहरणाः-तत्र मन्नद्धा युद्धसामग्रीभिः सज्जीभूतास्तथा, बद्ध परिकर कवचो यैस्ते पद्धपरिकराः पद्धकवचाः तथोत्पाटितः दृह बद्धो मस्तके चिन्ह पटः रक्तपट्टादि चिन्हविगेपो यैस्ते तथा गृहीतानि-परिधृतानि रिपुहनना यमायुधानि-वाणादीनि महरणानि-सङ्गानि यस्ते च तथा पदनयस्य फर्मधारयः। 'माढीपरवम्मगुडिया'माढीवरवर्मगुण्डिता:-तत्र-माढी-शरीरत्राणविशेषाः देशीशब्दोऽय वरनर्माणिगरानचानि तैर्गुण्डिताम्ान्छादितशरीरा , आविद्धनालिका निनदलोहफचुकाः करयकडगिया' कनचकण्टफिता:-सफण्टक कायेन कण्टफिता', 'उरसिरमुहबद्धकठनोणा' उर' शिरोमुसबद्धरण्ठतोणा:-तन ( सगाम अइवनि ) चे स्वयमेव सग्राम मे उतर आते है-युद्ध करने में । प्रवृत्ति वाले हो जाते हैं ऐसे ये राजा लोग ( मण्णवद्धपडियर उप्पा डिचिंधपट्टगहियाउत्पहरणा) (मण्णद्ध) पहिले तो युद्धसामग्री से मज्जीभूत होते है, (बरपडियर ) कवच से वाचकर अपने शरीर को सुरक्षित रखते हैं, (उप्पाडियचिंधपट ) मस्तक पर रक्तपदादिरूप चिह्नविशेष को दृढतररूप में चाँधते है, (गहियाउपहरणा) रिपु को नष्ट करने के लिये याण आदि आयुधो को और खड्ग आदि प्रहरणों को अपने पाममें रखते है (माढीवरवम्मगुडिया) माढी-शरीर त्राणविशेप ण्व उत्तम कवच से इनका शरीर आन्छादित रहता है, (आविद्धजालिका ) इनके भारीर पर लोहनिर्मित कवच बचा रहता (कवयकडगिया) काँण्टे वाले कवच से ये युक्त होते है, (उरसिरनुबद्ध अइवयति " तेमालते २९सयाममा तरी पछ-युद्ध श्वान तैयार ४ तय , मेवा ते सनसो “सण्णद्धबद्धपडियरउत्पडिय-चिंचपट्टगहिया रहपहरणा” “सण्णद्धा ' पडसा तो द्धनी सामग्री स.४ उरावे छ, " यद्धपडियर" तर पहशन पोताना शारने सुरक्षितनाव “ उप्पाडिय चिंधपट्ट" मस्त ५० सास यहि माहि पास यिनने भरत शते माघे " गहियाउहपहरणा" दुश्मनन ना ४२पाने माटे मायुधो भने तसपा२ मा शत्रो पोतानी पासे रामे छे “माढीवरवम्मगुडिया" भाटीગરીરના રક્ષણ માટેનું એક સાધન, અને ઉત્તમ બખતરથી પિતાના શરીરને माछाति रे , “ आविद्धनालिका" तभना शरी२ ५२ सालानु गमतर ॥धेयु य , “ कवयकडगिया " तेमा डाटा क्यथा युताय छ,
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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