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________________ २७८ ratorकरणसूत्रे सैन्यै, 'उच्चरता ' जास्त पन्त =मतिपक्ष सेनामा अत्यन्तः, 'रिभूय' अभि भूय= आक्रमणेन शत्रुश्य पराजित्य हटात् 'परधणार' पर वनानि हरन्ति | | ०४॥ तथा राजादयो यथा परपनादीन्यपहरन्ति नदाह - 'अपरे ' इत्यादिमूलम् - अबरे रणसीसललक्सा सगाम अडवयति, सण्णद्धबद्ध परियर उप्पाडियचिधपट्टगहियाउहपहरणा माढीवरवम्मगुडिया, आविद्धजालिया कवयकडगिया, उर सिरमुहबद्ध कठतोणा, पासियवरफलगरज्यपहकर सरभस खरचावकरकरचियसुनि सिय सरवरिसवडकर गम्यतघणचडवेगधारानिवाचमग्गे, अणेगवणुमडलग्गलधियउच्छलिय सत्ति - कणग - वामकर -- गाहिय - - खेडग --निम्मलनिकिट्ट - खग्ग-पहरंत कुत - तोमर चक्क - गया - परसु - मुसल - लगल - सूल-लउड - भिंडिपाल - सव्वल - पट्टिस- चम्मेट्टघण - मोहिय - मोग्गरवर - फलिह-जंत पत्थर - दुहण - तोण कुवेणी - पीढाकलिए || सू० ५ ॥ टीका- 'अवरे' जपरे= केचित् नृपा' 'रणसीसलगल+खा' रणशीर्षलव्यलक्ष्या = रणशोर्ते - सनामशिरसि लक्ष्या. = वैरीवेधने- सिद्धहस्ता सन्तः स्वयमेव 'सगाम' आच्छादित करते हुए ( अहिभूय ) अपने आक्रमणों से उसे पराजित करके (परधणाड ) परवन को ( हरति ) हरण करते है || सू०४ ॥ जो अन्य राजादिक पर के धन आदि हरण करते है उनको कहते हैं--' अवरे ' इत्यादि टीकार्थ - ( अबरे ) कितनेक राजा ( रणसीसलद्वलखा) जो रण शीर्षलन लक्ष्यवाले होते है-बैरी को मारने में सिद्ध रस्ते होते हैं प्रतिपक्षीना सैन्यने “ उत्उरता" घेरी सहने " अहिभूय " घोताना हुभसाथी તેને હરાવીને परधणाइ પરધનનુ हरति " २ रे छे ॥ ४ ॥ જે બીજા રાજતિકા પરધન આદિનુ હરણ કરે છે તેમનુ વર્ણન કરતા सूत्रअर डे छे - " अवरे " धत्याहि (c " ८८ elsa-"7" ull Seals Rimau “zoratacsszaı” » zgul ષ લબ્ધરણ્યવાળા હાય છે દુશ્મનની હત્યા કરવામા નિપુણ હોય છે “ सगाम
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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