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________________ सुदर्शिनी टीका न. २ सू० १३ नृपाचादिना जीवघातकवचननिरूपणम् २२९ क्षेत्राणि च 'स' कर्पत-कर्पयत मा । तथा ' अडचीदेसेसु' अटवी देशेषु-बन प्रदेशेषु 'गामनगरखेटकपडे' ग्रामनगरसेटमलटानि-जन ग्रामश्च नगर च प्रसिद्ध खेट च-नद्यादिवेप्टित धूलिपाकाररहित कट चगुत्सितजननिवासस्थानम् , तानि कीटशानीत्याह-चिउलसीमे' विपुलसीमानिविस्तीर्णसीमायुक्तानिरहु' रघु-मुदररोत्या शीघ्र पा सनिवेसेह' सन्निवेशयत=निवासयत तथा 'पुप्फाणि फलाणि य ' पुप्पाणि फलानि च 'कदमूलाइ' कन्दमूलानि तन कन्दा स्वर्णकन्दशर्कराकन्दलशुनादय मूलानिवृक्षमूलकानि 'कालपत्ताइ' कालमाप्तानि-उचितसमयलब्धानि 'गिण्ड' गृहीत-ग्रहण कुरुत, तथा ' पग्जिणस्म ' परिजनस्यकुटुम्बस्य, 'अद्वाय' अर्याय प्रयोजनाय सञ्चय 'करेह ' कुरुत ।। सु०१३ ॥ तथा (अडवीदेसेसु गामनगरखेटकपडे विउलसीमे लह सनिवेसेह) ग्राम, नगर, खेट, कर्यट आदि स्थानोको विस्तृत सीमायुक्त कर के अटवी देशोमें सुन्दर गति से शीघ्र बसावं, ( पुप्फाणि फलाणि य कदमूलाइ कालपत्ताद गिण्ह ) तुम लोग (कालपत्ताड ) कालप्राप्त फूले हुए (पुप्फाइ ) फलों को ( फलाणि ) पके हुए फलों को तथा (कदमृलाइ) पके हुए स्वर्णकन्द, राकद, लहसुन आदि कदों को और पिप्पलीमूल आदि मृलों को ( गिण्ड) ले आया करो, तथा (करेह सचय परिजणस्स अट्ठाए ) कुटुम्न के लिये धन आदि का सचय कर रख जाओ। भावार्थ-ये जसत्यवादीजन दूसरे व्यक्ति रमसे प्रसन्न रहें इसलिये सुहाती बाते उनसे करते रहते ह । इनका परिणाम क्या होगा? इसका वे जरा सा भी ध्यान नहीं रखते । जो ऊँट पालते है अथवा ऊँटसे जो " अडवोदेसेसु गामनगरखेडकबडे पिउल्सीमे लहु सनिवेसह " आम, नगर, ખેટ, ડર્બટ, આદિ સ્થાને વિસ્તૃત સીમાવાળા કરીને તજજડ પ્રદે મા સુદર रीत ४५थी वसावे, “पुष्पाणि फलाणि य कदमूलाइ कालपत्ताइ गिण्ह" तमे सो “काल्पत्ताइ" पिसवाने समय भारत विउसेवा " पुप्फाइ” सोने " फलाणि " पाउदा यानी तथा “ कदमूलाइ” पाउदा - १६-गया ससा मा होने तथा विपक्षी भृण मा भृगाने "गिण्ह " A माव्या उ२, तथा " करेह सचय परिजणस्स अदाए " टु५ माहिन भाटे धन આદિને સચય કર્યા કરે” એ પ્રકારની સલાહ આયા કરે છે ભાવાર્થ–તે અસત્યવાદી લેકો બીજા લેકોને ખુશ કરવાને માટે તેમને ગમે તેવી વાતે તેમની સાથે કર્યા કરે છે પણ તેનું શું પરિણામ આવશે? તે બાબતને તેઓ જરા પણ વિચાર કરતા નથી ઊંટ પાળનારને અથવા ઊ ટને
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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